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जो जो दलीलें थीं उनका अभ्यास पूर्वक निरसन कर अपने दर्शन का पूर्ण अभ्यास कर भाष्य के सिद्धान्तों का अपने निबन्ध में प्रतिपादन किया । '४८७।४८८।४८६।४६०॥' ___'गुरु प्रणीत आगमानुसार वाक्य पदीय के दो काण्डों में कितनेक विवादास्पद सिद्धान्तों का उदाहरण पूर्वक संक्षेप में निरूपण किया है, शेष विषयों की विस्तार पूर्वक अगले तीसरे काण्ड में विचारणा होगी। भिन्न-भिन्न आगमों के मन्तव्यों का अध्ययन करने से ही बुद्धि विवेक लाभ करती हैं केवल अपने तर्क के पीछे दौड़ने वाला मनुष्य गहन विषय को कितना स्पष्ट कर सकता है, पुराने आगमों के ज्ञान बिना प्रत्येक विषय में तर्क बाजी से विचार करने वाले और विद्वानों की उपासना न करने वाले मनुष्यों को विद्या फल नहीं देती ।४६११४६२।४६३॥' ___भर्तृहरि के उपर्युक्त निरूपण से निम्नलिखित फलितार्थ प्राप्त होता है
(१) पाणिनीय व्याकरण सूत्रों पर सर्व प्राचीन टीका ग्रन्थ आचार्य व्याडि कृत "संग्रह" था, जिसकी सहायता से अति प्राचीन काल में पाणिनीय व्याकरण का विद्यार्थी अध्ययन करते थे।
(२) समय जाते तत्कालीन विद्यार्थियों के लिए "संग्रह" अनुपयोगी जान पड़ा, फल यह हुआ कि धीरे-धीरे “संग्रह टीका" अभ्यास में से निकल सी गई थी।
(३) महर्षि पतञ्जलि ने देखा कि पाणिनीय शब्द शास्त्र पर इस समय के अनुरूप कोई भी विवरण ग्रन्थ नहीं है, यह सोचकर उन्होंने पाणिनीय सूत्रों तथा कात्यायन के वार्तिकों पर “महाभाष्य" की रचना की।
(४) भाष्य बनकर पाठ्यक्रम में प्रविष्ट हुआ तो बैजि, सौभव, हर्यक्ष आदि विद्वान् जो व्याडि के संग्रह के पाठी तथा पक्षपाती थे, महाभाष्य के विरोध में उठ खड़े हुए और विरोध इतना प्रबल हुआ
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