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________________ १६६ अँचता। "जयादित्य' ने प्रारंभ में "काशिका वृत्ति" बनाने की प्रतिज्ञा की है, तब आचार्य “वामन" ने समाप्ति में "काशिका" के नाम का उल्लेख किया है। इससे हमें तो यही मानना उचित लगता है कि आचार्य “जयादित्य' की अपूर्ण काशिका वृत्ति को "वामना चार्य' ने पूरा किया है। कुछ भी हो लेकिन पाणिनीय व्याकरण पढने वालों के लिए "काशिका" टीका एक दीपिका का काम करती है, यद्यपि महाभाष्य इससे अधिक विस्तृत है, तथापि पाणिनीय व्याकरण पढने वाले विद्यार्थियों के लिए "काशिका" द्वारा जितनी सहायता और स्पष्टीकरण मिलता है, उतना अन्य किसी टीका से नहीं। ___"काशिका' का निर्माण समय क्या है, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है, परन्तु 'काशिका" पर बौद्ध आचार्य "जिनेन्द्र बुद्धि" ने "न्यास" नामक व्याख्या लिखी है और उसके सम्पादक श्रीशचन्द्र चक्रवर्ती ने न्यासकार का सत्ता समय ७८२-८०७ वैक्रमाब्द पर्यन्त माना है। यह समय न्यासकार का ठीक हो तो काशिकाकार का समय इससे पूर्वतन है इसमें कोई शंका नहीं रहती "काशिका' के उपोद्घात लेखक श्री ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु “जयादित्य' का समय वि० सं० ६५०-७०० तक का बताते हैं, जो ठीक ही जान पड़ता है। जयादित्य ने 'भट्टाचार्य चरणाः" इस प्रकार का १ अध्याय के दूसरे पाद में उल्लेख किया है अतः ये श्री कुमरिल भट्ट के बाद के होने चाहिए। इससे भी इनका उपर्युक्त समय ठीक जान पड़ता है। पाणिनीय सूत्राष्टाध्यायी एवं पातञ्जल महाभाष्य पाणिनीय व्याकरण के कर्ता आचार्य पाणिनि नन्द राजा के राजत्त्व काल में होने का वर्तमान कालीन ऐतिहासिक विद्वानों ने अनुमान किया है, पाणिनीय अष्टाध्यायी जिसमें कुल मूल सूत्र ३९६३ वर्तमान में मिलते हैं, आजकल जो भी संस्कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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