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उपसंहार
गत पर्युषणा में मैंने कल्पसूत्र की वाचना उपाध्याय श्रीसंघविजयजी की प्रदीपिका के अनुसार की थी, प्रदीपिका टीका तो अच्छी थी, परन्तु इसका सम्पादन अच्छा नहीं होने के कारण कुछ मुश्किली अवश्य उठानी पड़ी, इस नयी टीका के पढने से इसकी उपस्थित अन्यान्य टीकाओं को पढने की इच्छा हुई, साथ में मुद्रित अमुद्रित सभी कल्प टीकाओं को पढकर उनका अवलोकन लिखने का विचार हुआ और पठित सब टीकाओं के सम्बन्ध में थोड़ा थोड़ा अवलोकन लिख दिया, इन सब टीकाओं में “सन्देह-विषौषधी" "कल्प दीपिका" दो “कल्पान्तर्वाच्य" और "कल्प व्याख्यान पद्धति'' ये सब हस्तलिखित पुस्तकों पर से पढी गईं, तब “कल्प किरणावली" "कल्प प्रदीपिका" “कल्प सुबोधिका'' “कल्प कौमुदी' 'कल्पद्रुमकलिका" और "कल्प समर्थन' नामक कल्पान्तर्वाच्य ये सब उपस्थित होने से मुद्रित पुस्तकों पर से पढे, इन टीकाओं की यथार्थ योग्यता का निर्णय करने के लिए गम्भीर विचार की आवश्यकता है, हमारे पास पर्याप्त समय न होने के कारण इनका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन तो नहीं किया फिर भी सरसरी नजर से इनको पढकर अपने विचार प्रदर्शित किये हैं। ____टीकाओं के लेखक सम्प्रदाय के लिहाज से दो प्रकार के हैं, खरतरगच्छीय और तपागच्छीय । तपागच्छीय लेखक विजयदेवसूरि और विजयानन्दसूरि के गच्छों में बंटे हुए हैं। ____ “संदेह विषौषधी,'' “कल्प व्याख्यान पद्धति" और "कल्पद्रुम कलिका' इन तीनों के लेखक खरतरगच्छीय विद्वान् हैं, रत्नचन्द्र पाठक शिष्य भक्तिलाभ किस गच्छ के थे, यह निश्चित नहीं हुआ, क्योंकि इनकी व्याख्यान पद्धति तपागच्छीय पद्धतियों से मिलती जुलती है, तब लेखक का नाम खरतरगच्छीय साधुओं के नाम से अधिक मिलता है, इसलिए इस कल्पान्तर्वाच्य के कर्ता के सम्बन्ध में निश्चय नहीं कर सके।
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