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१६१ "श्री आवश्यके भगवद्धस्ते एकशताष्टघटकस्य दानं दत्तं श्रेयांसेन एवमुक्तमस्ति"
उपाध्यायजी का उपर्युक्त कथन ठीक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि आवश्यक में “घट" शब्द बहुवचनान्त अवश्य है, परन्तु संख्या निर्दिष्ट नहीं है। श्रेयांस ने भगवान् की हस्तांजलि में एक अथवा उससे अधिक कितने घट परिमित रस ऊँडेला, इसका वहां कोई स्पष्टीकरण नहीं है।
भगवान् ऋषभदेव छद्मस्थावस्था में विचरते हुए तक्षशिला के उपवन में पधारे, वनपालक द्वारा बाहुबलि को भगवान् के आगमन की बधाई मिली, बाहुबलि ने सोचा-प्रातःकाल बड़े ऋद्धि-विस्तार के साथ भगवान् के वन्दनार्थ जाऊंगा, प्रातः समय बाहुबलि बडे ठाठ के साथ उपवन में पहुंचे, परन्तु भगवान् उसके पहले ही विहार कर अन्यत्र चले गये थे, बाहुबलि ने उपवन में सर्वत्र घूमकर उन्हें ढूंढा, परन्तु ' भगवान् कहीं नहीं मिले, इससे बाहुबलि के मन में बड़ा दुःख हुआ और दोनों कानों में अंगुलियां डालकर "बाबा आदम” इस प्रकार से उच्च स्वर से पुकार किया, लक्ष्मीवल्लभजी के मूल शब्द निम्न प्रकार के हैं:
" पश्चाद् बाहुबलिद्धि विस्तार्य आगत्य सकलं वनं वलोकितं, भगवन्तमदष्टया अतीव दूनो मनसि अज्ञासीत्, यदि अहं संध्यायामेव आगमिष्यं तदाहमदक्षयं, मनसि महद् दुःखं कृत्वा कर्णयोगलीः क्षिप्त्वा "बाबा आदम" इत्युच्चैः स्वरेण पुत्कृतिं चक्रे ।" ____ कभी कभी अशिक्षित जैनों के मुख से सुना जाता था कि मुसलमान बाहुबलि के वंशज हैं, यह अज्ञानपूर्ण बात लक्ष्मीवल्लभजी जैसों के उक्त प्रकार के भ्रान्त उल्लेखों का परिणाम हो तो आश्चर्य नहीं है।
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