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नन्दी का घातक होने का निदान करवाया है, इत्यादि इस प्रकरण में अनेक बातें निराधार लिखी गई हैं ।
भगवान् महावीर के निर्वाण के प्रसंग पर लिखते हुए कहते हैं"यस्यां रात्रौ भगवतः श्री महावीरस्य निर्वाणमभूत् तस्यां रात्र काशी देश अधिपाः, मल्लकी गौत्रीया नव राजानः, तथा कौशलदेशस्य अधिपाः लेच्छकीयगोत्रीया नव राजानः एते अष्टादशनृपाः, श्रीमहावीरस्य मातुलश्चेटको राजा तस्य सामन्ता अष्टादश गणराजानस्तैरष्टादशनृपैः ।। "
ऊपर के लेख से ज्ञात होता है कि काशी तथा कोशल के नौ-नौ गण राजाओं को आप काशी कौशल के अधिपति समझते थे और मल्ल तथा लिच्छवी उनका गौत्र मानते थे, यदि आपको यह ज्ञात होता कि मल्ल और लिच्छवी दो जातियां थीं, इन्हीं में से नौ-नौ गणराज नियुक्त होकर विदेह राष्ट्र के अधिपति महाराजा चेटक की राजसभा में जाते थे, ये अठारा चेटक के अधिकार संपन्न गणराज थे, उस समय काशी और कोशल विदेह राष्ट्र के साथ सम्मिलित राष्ट्र थे और उनमें गण राज्य चलता था ।
पर्युषणा कल्प में भगवान् महावीर के निर्वाण के समय उनके जन्म नक्षत्र पर भस्म राशि ग्रह आता था, जिसका नक्षत्र - भुक्तिकाल दो हजार वर्ष परिमित था, इसके सम्बन्ध में आचार्य जिनप्रभ ने अपनी "सन्देहविषौषधी टीका" में नक्षत्र के स्थान पर राशि लिखा है, उसी कथन का अनुसरण करके लक्ष्मीवल्लभजी ने भी अपनी टीका में "यश्च एकस्मिन् राशौ द्विसहस्रवर्षाणि तिष्ठति स भस्मराशिग्रहो भगवतो जन्मराशौ समागतः " इस प्रकार लिख दिया है, जो मूल कल्पसूत्र से विरुद्ध पड़ता है, क्योंकि मूल सूत्र में "जम्म नक्खत्तंसंकते” ये शब्द हैं, वास्तव में भगवान् महावीर के निर्वाण समय तक राशि की कोई चर्चा ही नहीं थी, इस परिस्थिति में नक्षत्र के स्थान पर राशि शब्द का प्रयोग करना तत्कालीन ज्योतिष विषय का अज्ञान सूचक है ।
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