________________
१७१ मानने में आवश्यकवत्ति, चूणि, ऋषभ चरित्रादि सर्व ग्रन्थों का विरोध उपस्थित होता है।
जम्बू चरित्र के अधिकार में पं० जयविजयजी जम्बू के माता, पिता, जम्बू की आठ स्त्रियों और उन स्त्रियों के माता, पिता इन सब की दीक्षा हो जाने के बाद कालान्तर में "प्रभव' और उसके साथी चार सौ निन्यानवे चोरों की दीक्षा होना बताते हैं और इसका आधार परिशिष्ट पर्व का वचन उद्धृत करते हैं ।
आचार्य भद्रबाहु और वराहमिहिर के सम्बन्ध में दीपिकाकार कहते हैं-वराहमिहिर के पुत्र हुआ था, और वराहमिहिर ने उसका आयुष्य सौ वर्ष का बताया था, अन्यत्र सर्व स्थानों में राजा के पुत्र होने की बात आती है, पं० जयविजयजी ने शायद "ऋषि मंडल प्रकरण' के टीकाकार पद्ममन्दिर गणी के मत का अनुसरण किया है, क्योंकि "प्रबन्ध चिन्तामणी'' के अतिरिक्त किसी भी कल्पसूत्र की टीका में वराह मिहिर के पुत्र होने की बात नहीं देखी जाती। ___ स्थविरावली में आर्यरक्ष के नाम पर किरणावलीकार ने आर्य रक्षित की जो कथा लिखी है उसके सम्बन्ध में दीपिकाकार निम्न प्रकार के शब्दों में किरणावलीकार उपा० धर्मसागरजी की भूल दिखाते हैं___"अत्र कल्प-किरणावलीकारेण आयरक्षिताकथा लिखितास्ति परं सा न युज्यते, यतः श्री आर्यरक्षितास्तोसलिपुत्राचार्यशिष्याः, श्रीवजस्वामिपावै नवपूर्वाध्येतारः नाम्ना यार्यरक्षिताश्च, एते चार्य नक्षत्रशिष्याः श्रीवजस्वामिभ्यः शिष्यप्रशिष्यादिगणनया नवमस्थानभाविनो नाम्नाप्यार्यरक्षा इति स्फुट एवानयोर्भेदोऽवसीयते इति ।।" ___'यहां (आर्य रक्ष के स्थान में) कल्प-किरणावलिकार ने आर्यरक्षित की कथा लिखी है, जो ठीक नहीं है, क्योंकि आर्यरक्षितजी तोसलिपुत्राचार्य के शिष्य थे और वजूस्वामी के पास नवपूर्व पढ़े थे, नाम से भी आर्यरक्षित ही थे, तब ये आर्य रक्ष आर्य नक्षत्र के शिष्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org