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द्वितीय ध्रुवसेन - ( गु. सं. ३०८ से ३२३ ) ई. सं. ६२७ से ६४२ तृतीय ध्रुवसेन -- ( गु. सं. ३३१ से ३३५ ) ई. सं. ६५० से ६५४
ध्रुवसेन, घरसेन, शीलादित्यादि मैत्रक वंशीय राजा थे, इनकी राजधानी वलभी नगर था और " महास्थान" होने के कारण ग्रानन्दपुर में भी राजाओं का निवास स्थान रहता होगा, परन्तु ९६३ के साथ इनका समय मेल नहीं खाता, क्योंकि इनमें जो सर्व प्रथम ध्रुवसेन था, उसका भी राजत्व काल ई० सं० ५१६ से ५४६ तक था, जो विक्रम संवत् ५७६ - ६०६ होता है, तब वीर निर्वाण संवत् ६६३ में विक्रम संवत् ५२३ आता है, जिस समय पहले ध्रुवसेन का भी अस्तित्व नहीं था, तो दूसरे तीसरे ध्रुवसेन की तो बात ही कहना निरर्थक है ।
इस वाचनान्तर का खरा रहस्य तो यह है कि महावीर के सूत्रागम की वाचनाएँ उनके निर्वाण के बाद तीन हुई हैं ।
वाचना पहली पाटलीपुत्र नगर में आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी के युगप्रधानत्व काल में हुई थी जिसमें ग्यारह अंगों की संघटना स्थविरों ने पाटलीपुत्र में ही करली थी और पूर्वश्रुत का अध्ययन आर्य भद्रबाहु ने नेपाल के मार्ग में रहते हुए कराया था, स्थूलभद्र मुनि १४ पूर्व उन्हीं के पास पढ़े थे ।
दूसरी माथुरी वाचना मथुरा नगरी में वीर निर्वाण से ८२७ और ८४० के बीच में युग प्रधान आचार्य श्री स्कन्दिल सूरि की प्रमुखता में हुई थी इसलिए वह माथुरी वाचना कहलाई, इस वाचना के समय सब सूत्रागम लिख लिये गये थे और अनुयोग धर आचार्यों को कालिक सूत्र की एक एक पुस्तक अपने पास रखने की आज्ञा दी थी ।
जिस समय उत्तर-पूर्वीय जैनश्रमण संघ ने मथुरा में स्कन्दिलाचार्य की प्रमुखता में आगम व्यवस्थित किये थे, उसी समय के लगभग दक्षिण पश्चिमीय जैन श्रमण संघ ने सौराष्ट्र के वलभीनगर में इकट्ठा होकर नागार्जुन वाचक की प्रमुखता में
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