SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक भूल के बाद नयी-नयी दूसरी भूलें किस प्रकार होती हैं ? उसके कुछ दृष्टांत उपस्थित किये हैं, उपाध्याय धर्मसागरजी के बाद जितने भी कल्पटीकाकार हुए हैं, उन सभी ने इस भूल को आगे से आगे खींची है, परन्तु परिमार्जन नहीं किया, खरी बात तो यह है कि उस समय मथुरा तरफ के प्रदेश में बैलगाडियाँ दौड़ाकर लोग हार जीत करते थे, यहां पर यात्रा शब्द मेले का वाचक है, उस मेले में अच्छे से अच्छे बैलों को गाडी में जोतकर दौड़ाते और सब से आगे बढने वाले पुरस्कार पाते थे, घुड़दौड़ की तरह इन गाडियों की दौड़ को देखने के लिए वहां हजारों लोगों का मेला लगता था । कल्पटीकाकार इस स्थिति को समझ गए होते तो यह भूल आगे चलने नहीं पाती। पं० संघविजयजी गणी "महावीर निर्वाण के बाद १८० में वलभी में आगम लिखे गए और ६६३ में कल्पसूत्र सभा में वांचा गया, इस मान्यता वाले प्रतीत होते हैं,' इसीलिये किसी अन्तर्वाच्य के "नवशत अशीति वर्षे, वीरात् सेनाङ्गजार्थमानन्दे । संघसमक्षं समहं, प्रारब्धं वाचितं विज्ञः" ॥१॥ इस पद्य का खंडन करते हुए आप कहते हैं, ६८० में पर्य षणा कल्प की सभा में वाचना प्रारम्भ करने की बात असंगत है, "वायणंतरे' इस शब्द का दूसरा अर्थ दूसरी वाचना ऐसा होता है, कल्प पुस्तक पर लिखा गया यह पहली वाचना और सभा में पढ़ा गया यह दूसरी वाचना समझना चाहिए, परन्तु पं० श्री संघविजयजी की यह मान्यता श्री मुनिसुन्दर सूरिजी के एक स्तोत्र के पद्य पर से निश्चित हुई है, जो ठीक नहीं है, क्योंकि वीरनिर्वाण के बाद ६६३ में ध्रुवसेन राजा के अस्तित्व का ही पता नहीं है, तो उसके लिए सभा में कल्प-वाचना का तो सम्भव ही कैसे हो सकता है । ध्रुवसेन नामक मैत्रक वंशी वलभी में तीन राजा हुए हैं, जिनका अस्तित्व समय नीचे लिखे अनुसार थाप्रथम ध्रुवसेन- (गु. संवत् २००-२३० तक) ई. स. ५१६ से ५४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy