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४-जन्मोत्सव-क्रीड़ा कुटुंब विचार पर्यंन्त चौथा।
५--दीक्षा ग्रहण, ज्ञान प्राप्ति, परिवार संख्या और मोक्ष पर्यन्त का पांचवां ।
६-पार्श्वनाथ चरित्र-नेमिनाथ चरित्र और तीर्थंकरों के आंतरे । ७-आदिनाथ चरित्र और स्थविरावली का सातवां । ८-कालकाचार्य कथा का व्याख्यान पाठवां । E-सामाचारी का व्याख्यान और मिथ्यादुष्कृतकरणः नौवां ।
इस प्रकार इस अन्तर्वाच्य में नव प्रकार की वाचनाएँ स्वीकृत की हैं।
पूर्वोक्त दो कल्पान्तर्वाच्यों की ही तरह इस अन्तर्वाच्य में भी स्थविरावली को पूरा करके कतिपय अन्य स्थविरों की नामावली भी दी है, जो इस प्रकार है___ श्री वृद्धवादी, सिद्धसेन, आर्यखपट, हरिभद्र, श्री बप्पभट्टि सूरि, अभयदेव सूरि, श्री मलयगिरिसूरि, श्री यशोभद्र और श्री हेमसूरि के अतिरिक्त श्री मानतुंगसूरि, वादिवेताल शान्तिसूरि, परकाय प्रवेश विद्याभृत् श्री जीवदेवमूरि और वादिदेवसूरि प्रमुख अनेक युगप्रधान समान आचार्यों का स्मरण किया है, इससे दो बातें निश्चित हो जाती हैं—पहली तो यह कि इस कलान्तर्वाच्य का लेखक खरतरगच्छीय मालूम नहीं होता, यदि खरतर होता तो इन नामों के साथ खरतर गच्छ मान्य जिनदत्तसूरि आदि किसी एक विद्वान् आचार्य का नाम उपर्युक्त विद्वानों की नामावली में अवश्य बढ़ा देता, परन्तु इसमें ऐसा नहीं किया, इसके विपरीत लेखक ने वादिदेवसूरि का नाम निर्देश किया है, जिससे वह पार्श्वचन्द्रगच्छीय होने का संभव रहता है।
इस अन्तर्वाच्य के निर्माता ने अन्त में अपना परिचय निम्न प्रकार से दिया है
"श्रीरतनचन्द्रपाठक,-शिष्योपाध्याय-भक्तिलाभेन । संकलितं श्री कल्पान्तर्वाच्यं वाचयन्तु बुधाः ॥१॥"
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