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कोई बीस से अधिक कल्पसूत्र पर बनी हुई व्याख्यायें दृष्टिगोचर होती हैं, परन्तु उन सभी की चर्चा करने का यह स्थल नहीं, जितने अन्तर्वाच्य और जितनी टोकाएँ हमने पढ़ी हैं, उन्हीं पर कुछ लिखने का निश्चय किया गया है। कम्प सूत्र के अन्तर्वाच्य और टीकाओं की अर्वाचीनता. - वर्तमान समय में मिलने वाले अन्तर्वाच्यों और टीकाओं की प्राचीनता अर्वाचीनता का विचार करते हैं तो ज्ञात होता है कि कल्पसूत्र की वाचना के दर्मियान पढ़ने के लिए बनाए गये कल्पान्तर्वाच्य अधिक प्राचीन नहीं हैं, सुविहित श्रमणों द्वारा कल्पसूत्र का सभा समक्ष पांचना मान्य होने के बाद धीरे धीरे कल्पान्तर्वाच्यों की सृष्टि होती गयी है और कल्प टीकाओं का निर्माण तो अन्तर्वाच्यों के भी बाद का है, इस समय में हमारे सामने ३ कल्पान्तर्वाच्य हैं, जिनमें एक मुद्रित और दो हस्तलिखित हैं।
१–मुद्रित कल्पान्तर्वाच्य वही है, जिसे श्री सागरानन्दसूरिजी ने "कल्प समर्थन' इस नाम से छपवाकर प्रसिद्ध किया है, इसका कर्ता कौन है, यह कहना कठिन है, क्योंकि लेखक ने अपना नाम कहीं भी सूचित नहीं किया, फिर भी अन्तर्वाच्य का आन्तर स्वरूप पढ़ने से इसका निर्माण काल अनुमित हो सकता है, अन्तर्वाच्य के लेखक ने कल्पस्थविरावली के अन्त में कतिपय अर्वाचीन, स्थविरों के नाम भी लिखे हैं, जिनमें प्रसिद्ध आचार्य श्री हेमचन्द्र और उनके समकालीन प्रसिद्ध टीकाकार आचार्य श्री मलयगिरिजी के नाम भी मिलते हैं इससे अनुमान किया जा सकता है कि यह कल्पान्तर्वाच्य विक्रम की १३वों शती के पहले का नहीं है।
अन्तर्वाच्यकार ने कल्प की सामाचारी में आनेवाली सौवीरजल तथा अनेक प्रकार के धावन जलों की चर्चा करके उन्हें ग्राह्य प्रमाणित करने की चेष्टा की है, विक्रम की चौदहवीं शती में धावन जलों के सम्बन्ध में तपागच्छ तथा खतरगच्छ के आचार्यों में बड़ा
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