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जितना पाप हो उससे नव गुणा पाप स्त्री के संग से साधु बांधता है, साध्वी के संग एक बार मैथुन करने से हजार गुना और प्रेमवश यह काम करे तो किरोड़ गुना पाप हो, और तीसरी बार वही पाप करे तो बोधिका विनाश होता है।
मूलाधार पाठ नीचे लिखे अनुसार है
"सयसहस्सनारीणं, पोटं फालेतु निग्घिणो । सत्ताइमासिए गम्भे चडफडते निगिंतइ । जो तस्स जेत्तियं पापं, तेत्तियं तं नवगणं । ऐकसित्थीए संगण, साहू बंधेज्ज मेहुणा । साहूणीए सहस्सगुणं, मेहुणेक्कसि सेविए ।
कोडीगुणं तु पिज्जेणं, तइए बोही पणस्सइ ।।" (६।१४७) १६ भिन्न २ अपराधों की शिक्षा--
कषायों की उदीरणावस्था में भोजन करे अथवा कषायों की उदीरणा करे, रातवासी रखे तो १ महीना भर अवद्य और उपस्थापना । दूसरे के कषायों की उदीरणा करे, कषाय की उदीरणा कर वृद्धि करे, किसी का मर्म प्रगट करे अथवा मर्म बोले इन सबमें गच्छ बाह्य, कर्कश, परुष भाषण में द्वादश भक्त, खर, परुष, कर्कश, निष्ठुर, अनिष्ठ भाषण में उपस्थापना, दुर्बोलकथने क्षमा प्रार्थना, कलि, कलह, झझा वा तोफान करने पर गच्छ बाह्य, मकार जकारादिगालिहेने पर क्षामण, द्वितीय वार करणे अवंद्य, वध करे वा हनन करे संघबाह्य (७/७७)
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