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ज्ञान- दर्शन - चारित्र सम्पन्न होंगे । इनमें महायशा महाप्रभावक “दुःप्रसह” अनगार अत्यन्त विशुद्ध सम्यग्दर्शनधारी, चारित्रगुण सम्पन्न होंगे, इसी प्रकार वह "विष्णु श्री " साध्वी भी उक्त प्रकार के गुणों से विभूषित होंगी, इनका उत्कृष्ट प्रायुष्य १६ वर्ष का, दीक्षा पर्याय ८ वर्षका पालकर आलोचना प्रायश्चित्त कर पंच नमस्कार का स्मरण करते हुए चतुर्थ भक्त से आयुष्य समाप्त कर सुधर्म देवलोक में देव होंगे, हे गौतम ! दुःप्रसह अनगार के जीवन पर्यन्त उक्त गच्छ व्यवस्था चलती रहेगी, दुःप्रसह अनगार के समय में दशकालिक सूत्र विद्यमान होगा और उसीके अनुसार तब साध्वाचार होगा ।
दुष्षमाकाल के अंतिम समय का संघ निम्नलिखित पाठ में वर्णित है
"ताणं से दुष्पसहे अणगारे सहाए भवेजा, सावि य विन्दुसिरी अणगारी असहाया चेव भवेजा एवं तु ते कहं राहगे भवेजा, गोयमा ! णं दुस्समाए परियंते चउसे जुगपहाणे खाइगसंमत्त - णाण- दंसण चारित्तसमणिए भवेज्जा । तत्थ णं जे से महायसे महाणुभागे दुप्पस हे अणगारे से णं यच्चंत विसुद्धसम्म सखाण चारितगुणेहिं वसु हिद्वसुगहमन्नेगो (मग्गो) आसायणाभीरू xx तहासा वि य एरिसगुणजुत्ता चैव सुगहियनामधिज्जा बिज्ज (पहु) सिरी अणगारी भवेजा । तहा तेसि सोलस संच्छराई परमं आउ अट्ठ य परियाओ, आलोइयनी सल्लाणं च पंच नमोकार पराणंचउत्थ भत्तेणं सोहम्मे कप्पे उववाओ ।"
११ - धर्मचक्र तीर्थ यात्रा -
बिना निकले हुए अपने वज्र ने कहा- ' हे उत्तम
धर्मचक्र की यात्रा के लिए गुर्वाज्ञा के ५०० शिष्यों के पीछे जाने वाले आचार्य कुल - निर्मल वंश के विभूषण समान अमुक प्रमुख महासत्वो ? विहार प्रतिप्रन्न महाव्रताधिष्ठित महाभागों ! साधु साध्वियों के लिए
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