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________________ १३४ आचार्यों की संख्या लिखी है, कहा गया है कि पचपन करोड़ लाख पचपन करोड़ हजार, पचपन सौ करोड़ और पचपन करोड़ महावीर के शासन में आचार्य होंगे, इनमें से कितनेक गुणाकीर्ण और निर्वृति गामी होंगे, जो आचार्य सर्वोत्तम होते हैं उनका नम्बर तीर्थकर के बाद आता है, उक्त वर्णन वाली गाथाएँ ये हैं एत्थं चायरियाणं, पणपणं होंति कोडिलक्खायो । कोडिसहस्से कोडिसएय तह एलिए चेव । एतेसिं मझाओ, एगे निव्वुइ गुणगणाइन्ने । सव्वुत्तामभंगेणं, तित्थयरस्साणुसरिसगुरु ॥” (श६२) उक्त गाथाओं में जो आचार्य संख्या दी है इसका मूल आधार क्या है यह बताना शक्य नहीं। युगप्रधान स्तवों में उक्त संख्या उपलब्ध अवश्य होती है, परन्तु सभी युगप्रधान स्तव प्रस्तुत महानिशीथ के बाद के हैं, इस दशा में उक्त स्तव स्तोत्रादि महानिशीथ का आधार नहीं बन सकते प्रत्युत महानिशीथ इन स्तव स्तोत्रों का आधार बन सकता है, महानिशीथ के पूर्ववर्ती किसी भी ग्रन्थ में आचार्य संख्या का सूचन तक नहीं मिलता यह बात भी विचारणीय है। ६-पांचवें अध्ययन में-मुनि, संघ, तीर्थ, गण, प्रवचन, मोक्ष मार्ग, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, घोरोग्रतप और गच्छ इन शब्दों को एकार्थक कहा है जो यथार्थ नहीं है । संघ, तीर्थ, प्रवचन, मोक्षमार्ग ये एकार्थक होने में कोई आपत्ति नहीं है, पर ये प्रवचन के पर्याय नहीं हैं, दर्शनादित्रय को समुदित रूप में ही मोक्ष मार्ग माना गया है, प्रत्येक को नहीं, तप चारित्र का अंग मात्र है, स्वतन्त्र मोक्ष मार्ग नही, मुनि मोक्ष मार्ग का उपदेशक अथवा साधक हो सकता है, स्वयं मोक्ष मार्ग नहीं, 'गण' तथा 'गच्छ' को मोक्ष मार्ग का पर्याय मानना अयुक्तिक है, "गण" शब्द का पारिभाषिक अर्थ-आचार्य, उपाध्यायादि पांच विशिष्ठ सत्ताधारी अधिकारी मंडल सहित मुनि समुदाय होता है तब “गच्छ' 'गण-" गत ३/४/५ आदि मुनियों की टुकड़ियों के अर्थ में रूढ़ है, इनकी गणना "मोक्ष मार्ग" में नहीं हो सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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