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________________ ४ अंतरड-गोलिकाग्रहण-विधि रत्न द्वीप निवासी मनुष्य अंतरंडगोलिकाधारी जल मनुष्यों को वर्ष पर्यन्त वज्र घरट्ट के बीच पीसते हैं तब उनके प्राण जाते हैं और उनकी अंडगोलिकायें रत्न द्वीप के मनुष्यों द्वारा ली जाती हैं, इस पर गौतम पूछते हैं कि भगवन् ! कैसे वे बेचारे इस प्रकार से अत्यन्त घोर भयंकर दुःख समूह सहन करते हुए निराहार वर्ष पर्यन्त जीवित रहते हैं ? भगवान उत्तर देते हैं कि गौतम ! स्वकृतकर्मों के प्रभाव से वे जीवित रहते हैं, इसकी शेष हकीकत प्रश्नव्याकरण के वृद्ध-विवरण से जानने योग्य है। जिस चतुर्थ अध्ययन के पाठ के आधार से उपर्युक्त वृत्तांत लिखा है वह पाठ निम्नोद्धृत है___ "से भयवं कहं ते वराए तं तारिसं अच्चतघोरदारुणसदुस्सहं दुक्खनियरं विसहमाणे णिराहारपाणगे संवच्छरं जाव पाणे विधारयति ?, गोयमा ! सकयकम्माणुभावो सेसं तु प्रश्नव्याकरण वृद्ध विवरणादवसेयम् ।" (४।८५) रत्न द्वीप निवासी मनुष्यों द्वारा जल मनुष्यों की अंडगोलिकायें लेने की विधि प्रस्तुत महानिशीथ को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती, लोकप्रकाश आदि अर्वाचीन ग्रन्थकारों ने यह वृतान्त प्रस्तुत महानिशीथ के आधार से ही लिखा है, यह निसंदेह बात है। विशेष हकीकत प्रश्न व्याकरण के वृद्ध विवरण से जानने की सूचना की है, परन्तु प्रश्नव्याकरण पर कभी वृद्ध विवरण था इसमें भी कोई प्रमाण नहीं है, यदि था तो उसके कर्ता कौन थे, इसका कोई निर्णय नहीं है, मूल प्रश्नव्याकरण सूत्र का ही पता नहीं है तो वृद्धविवरण की तो आशा ही क्यों करनी चाहिए। ५ महावीर के धर्मशासन में आचार्यों की संख्या महानिशीथ के पंचमाध्ययन में महावीर शासनवर्ती सर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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