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________________ १२५ कुछ मतभेद अथवा नवीनता सूचक घटनाएं घटी थीं या नहीं इस विषय पर थोड़ा ऊहापोह करना पड़ेगा | विक्रम की आठवीं शती में कोई नया मत या गच्छ निकलने का प्रमाण नहीं मिलता, परन्तु यह शती जैन श्रमणों के शैथिल्य का प्रधान समय था, श्री धर्मदास गणि की उपदेश माला, आचार्य हरिभद्र के ग्रंथ और महानिशीथ के अमुक लेखों से सिद्ध होता है कि वह समय शिथिलाचारियों के प्राबल्य का समय था । " से भयवं किं तं सविसेसं पायच्छित्तं जावणं वयासि - गोयमा ! वासारतियं ? पंथगामियं२ वसहिपारिभोगियं३ गच्छायारमइक्कमणं४ सुत्तीभेयपयरणं५ सत्तमंडलीधम्माईक्कमणं६ अगायत्थगच्छपया जायं ७ कुसील-संभोगजंद अविहीए पवजादाखोवटठावणाजग्गस् सुत्तत्थोभयपण्णवणजायं १० अणाययरोक्कसवेरत्तणाजायं ११ देवसिय १२ राइयं १३ पक्खियं १४ मासि १५ चाउम्मासि १६ संवच्यरियं १७ एहियं १८ परलोइयं १६ मूलगुणविराहणं २० उत्तरगुणविराहणं २१ श्राभोगाऽणाभोगयं २२ आउद्विपमायदप्पकप्पियं २३ वयसमणधम्म संजमतव नियमकसापदण्डगुत्तीयं २४ मय-भय- गारव - इंदियजं २५ वसणार्यक रोहट्टज्झाणरागदोस - मोह- मिच्छच दुडकूरज्यवसायसमुत्थं २६ ममत्तमुच्छापरिरंगहारंभजं२७ समिइत्तपट्टमसासित्त२८ धम्मंतराय संता बुव्वेगाऽसमाहाणुप्पायi २६ संखाईयासाय गाण्णय रासायणयं ३० पाणत्रहसमुत्थं३१ मुसावायसमुत्थं ३२ अदत्तादाणगहणसमुत्थं ३ २ मेहुण सेवणासमुत्थं ३४ परिग्गहकरणसमुत्थं ३५ राइभोयणसमुत्थं३६ माणसियं३७ वाइयं३८ काइयं३६ संजमकरण कारवण अणुमइसमुत्थं ४० जावणं नाणदंसण-चारित्तायारसमुत्थं, कि बहुणा जावइयाई तिगालचितिवन्दणादओ प्रायच्छित्तगणाई पण्णत्ताई तावइयं च पुणो विसेसेणं गोयमा ! असंखेयहा पण्णत्रिज्र्ज्जति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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