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विधानों की गहराई में उतरने के बजाय दूसरे उपलब्ध होने वाले ऐतिहासिक सूचनों और निर्देशों पर विचार विमर्श करना ही विशेष उपयोगी होगा।
प्रायश्चित्त सूत्र का विच्छेद होगा तब सात अहोरात्र तक चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारों का प्रकाश मंद होने की बात भी जैन आगमों से विरुद्ध जाती है, जैन आगमों में अन्तिम तीर्थंकर के निर्वाण के समय में, पूर्वश्रुत आदि के विच्छेद के समय में, जैन धर्म के विच्छेद के समय में और अग्नि के विच्छेद के समय में क्षणभर अन्धकार होने का अवश्य लिखा है, पर प्रायश्चित्त सूत्र के विच्छेदकाल में सप्त अहोरात्र तक सूर्य, चन्द्रादिका प्रकाश स्फूतिहीन हो जायगा ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा, हमारी राय में तो प्रायश्चित्त सूत्र के मान में महानिशीथकार ने यह एक तोप दागी है ।
कुगरुओं की उत्पत्ति--
"से भयवं केवइएणं कालेणं पहे कुगरू भवीहंति ? गोयमा ! इयो य अद्धतेरसण्हं वाससयाणं साइरेगाणं समइक्कंताणं परो भवींसु से भयवं केणं अट्टेणं, गोयमा तत्कालं इट्टि-रस-साय-गारव संगए ममीकार-अहंकार-ग्गीएअंतोसंपजलंतबोंदी अहमहतिकयमाणसे अमुणियसमयसब्भावे, गणी भवींसु, एएणं अटेणं । से भयवं किं सव्वेऽवित एवंविहे तत्कालं गणी भवीसु? गोयमा ! एगंतेणं नो सव्वे, केई पुण दुरंतपंतलक्खणे, अदट्टव्वे णं एगाए जणणीए जमगसमगं पमए निम्मेरे, पावसीले, दुजायजम्मे, सुरोद्दपयं डाभिग्गहियदरमहामिच्छदिही भविसु, से भयवं कहं ते समुवलक्खेजा ? गोयमा ! उस्सुत्तम्मग्गपवत्तणुदिसणअणुमती पच्चएणं वा से भयवं जे णं गणी किंचि आवस्सयं पमाएजा ? गोयमा! जे णं गणी अकारणिगे किचि खणमेगवि पमाए से ण अवं दे उवइसेजा।"
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