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आचाम के एकासनक, ७० निविकृतिक, यावत् अनुलोम प्रतिलाम रीति से उक्त प्रायश्चित्त देना, इस प्रायश्चित्त को जो भिक्षु विना विराम लिए वहन करे-उसको आसन्न भव्य समझना चाहिए।'
"से अयवं इणमो सयर सरि' अणलोमपडिलोमेणं केवतियं कालं जाव समणदिठिहि गोयमा ! जाव ण आयारमंगं वाएज्जा ।"
अर्थ- 'सो भगवन् ! यह ७०-७० मासक्षपणादि अनुलोम प्रतिलोम रीति से देने की पद्धति कितने काल तक चलेगी ? गौतम ! जब तक आचारांग अंग सूत्र विद्यमान रहेगा तब तक उक्त प्रायश्चित्त पद्धति भी चलती रहेगी।'
"जया णं गोयमा !, पच्छित्तसुत्तं वोच्छिन्जिहिइ तया णं चंदाइञ्चगहरिक्खतारगाणं सत्त अहोरत्ते तेयं णो विप्फुरेज्जा, इमस्स णं वोच्छेदे गोयमा ! कसिणसंजमस्स अभावो, जो णं सव्वपावपणिंट ठवणे चेव पच्छित्ते, सव्वस्स णं तवसंजमाणु टठाणस्स पधाणमंगे परमविसोहिपए परयणस्सावि ण णवणीयसारभूए पण्णत्ते, इणमो सबमवि पायच्छित्तं, गोयमा जावइयं एगत्थ संपिंडियं हवेज्जा तावइयं चेव चंउ गुणंएगस्स णं गच्छाहिवइणो मयहरपवित्तिणीए य चउगुणं उवइसेजा, जो णं सबमवि एएसि पडियं हवेजा, अट ठाणमिम चेव पमायवसं गच्छेजा, तो अण्णेसिं संते वा बलवीरिए सुट ठुतरागमच्चुज्जमं हवेज्जा, अहा णं किंचि सुमहत्तमवि तवोणुट ठाणमब्भुज्जमज्जा ता णं न तारिसाए असद्धाए किंतु मंदुच्छाहे समणुट ठेज्जा भग्गपरिणामस्स य निरत्थगमेव कायकिलेसे, एएणं पवुच्चइ-गोयमा ! जहा णं गच्छाहिवइमाईणं इणमो सव्वमवि पच्छित्तं जावइयं ऐगत्थ सपिडियं हवेज्जा तावइयं चेव चउगुणं उवइसेज्जा ।" ___ अर्थ-'हे गौतम ! जब इस प्रायश्चित्त सूत्र का विच्छेद होगा तब चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारे, सात अहोरात्र तक निस्तेज हो
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