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________________ ११७ रखने का अधिकार दिया गया है, जिससे कि वह समय विशेष में उनका उपयोग कर सकें, वृद्ध अथवा राजकुमारादि सुकुमार प्रव्रजित कष्टाऽसहिष्णुओं के उज्जडभूमि में चलने के समय पगों के नीचे उनकी तलियां बांधी जाती थीं, न कि सिले हुए उपानह ( जूते ) पहनाये जाते थे, महानिशीथकार साधु को जूते न रखने, न पहनने पर प्रायश्चित्त का विधान करते हैं जो विचित्र है, जब साधु को उपानह रखने का ही अधिकार नहीं है तो न रखने पर न पहनने पर दंड कैसा ? यह चीज आचार्य को ही रखने का अधिकार है अन्य साधु को नहीं, इस परिस्थिति में महानिशीथकार का उपानह संबंधी प्रायश्चित्त का विधान अनागमिक है । शाम को प्रतिक्रमण करने के पूर्व देववन्दन करने की रीति अर्वाचीन है प्राचीन नहीं, इस दशा में शाम को देववन्दन किये बिना प्रतिक्रमण करे उसे चर्तुथभक्त प्रायश्चित्त देने की बात महानिशीथकार का मार्शल लॉ मात्र है । जैन साधुओं की उपधि में पूर्वकाल में उत्तरपट्टक की परिगणना ही नहीं थी, महावीर निर्वाण के बाद लगभग ६०० वर्षों में उत्तर पट्टक को उपधि में स्थान मिला है, इस स्थिति में उत्तर पट्टक के बिना संथारा करने वाले को प्रायश्चित्त कैसे दिया जा सकता है ?" संस्तारक - शयन-विधि— " सव्वस्त समयसंघस्स साहम्मियाणमसाहम्मियाणं च सव्वेसि पि जीवरासिस्स सव्वभावभावतरंतरेहिं णं तिविहणं तिविहेणं खामण मरिसाव अकाऊण चेइएहिं अदिएहिं गुरुपायमूलं च वहिदेहस्सा सणादीनं च सागारेणं पच्चक्खाणं करणं कण्णविवरेसु च कप्पासरूवे हिं तु अइएहिं संथारम्हि गएज्ज, एएसु पत्तेगं उवट्ठावणं, संथारगम्हि उगऊणमिमस्स णं चम्मस रीरस्स गुरुपारंपरिएणं समुवलद्ध हिं तु इमेहिं परममंतक्खरे हिं दससुविदिसासु अहि-हरि करिदृट्ठसत्तवाणमंतर पिसावादीण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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