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१११ भावस्सगाणि ?, से भयवं केणं अद्रेणं एवं बुच्चइ जहाणं
आवस्सगाणि ? गोयमा असेसकसिणठकम्मक्खयकारिउत्तम सम्मइसणनाणचारित्तऽच्चंतघोरवीरुग्गकट्ठसुदुक्करतव साह हा एस परुविञ्जन्ति नियनियविभत्तदिपरिमिएणं काल समएणं पर्य पएणाहनिसाणसमयमाजम्म अवस्समेव तित्थयराइ स कीरति अणुहिज्जति उवइसिज्जति परूविज्जति पएणविज्जति सययं एएणं अटेणं एवं बुच्चइ गोयमा ! जहा णं आवस्सगणि।" ___ अर्थ-'हे भगवन् ! प्रायश्चित्तों के पद कितने होते हैं ? गौतम ! प्रायश्चित्तों के पद संख्यातीत होते हैं। भगवन् ! उन संख्यातीत प्रायश्चित्त पदों में पहला प्रायश्चित्त पद कौनसा है ? भगवान ने कहा—गौतम ! “प्रतिदिन-क्रिया" यह प्रथम प्रायश्चित्त पद है। गौतम-भगवन् ! प्रतिदिनक्रियापद का तात्पर्यार्थ क्या है ? "प्रथम प्रायश्चित्त पद” इस नाम से क्यों व्यवहृत होता है ? उत्तर--गौतम ! क्योंकि प्रतिसमय, दिन, रात, यावज्जीवन पर्यन्त अनुष्ठेय अनेक आवश्यक कहलाते हैं ।
प्रश्न-भगवन् ! प्रतिदिन कर्त्तव्य आवश्यक क्यों कहलाते हैं ? उत्तर-गौतम ! सम्पूर्ण अष्टकर्मक्षयकारक उत्तम सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, अत्यन्त घोर, वीर, उग्र, कष्टकारक सुदुष्कर तप की साधना इन आवश्यकों के नाम से प्ररूपित की जाती है, अपने अपने लिए विभक्त काल समयों में प्रत्येक पद दिन, रात, समय से लेकर जीवन पर्यन्त तीर्थंकरादि के उद्देश से निरंतर अवश्य अनुष्टित किया जाता है, उपदेश किया जाता है, प्ररूपणा-प्रज्ञापना की जाती है, इस कारण से गौतम ! इसे 'आवश्यक' इस नाम से व्यवहृत किया है ।
से भयवं किं तं बितियं पायच्छित्तस्स णं पयं ? गोयमा ! बीयं तइयं, चउत्थं, पंचमं जाव णं संखाईयाई पायच्छित्तस्स णं पयाई ताव णं एत्थं चेव पढमपायच्छित्तपए अंतरोवगयाई समणु
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