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चैत्यमास की उत्पत्ति"ते णं कालेणं तेणे समएणं अमुणियसमयसमावेहि तिगारवमईए मोहिएहिं, णाममेत्तप्राय रियमयहरेहि सड्ढाईणं सयासानो दविणजायं पडिग्गहिय २ थंमसहस्संसिए सके सके ममत्तोए चेइयालगे कारवऊणं ते चेव दुरंतपंतलक्खणाग्रहमा हमेहिं आसइए ते चेव चेइयालगमासीय गोविऊणं च बलवीरिय परिसरकारपरक्कम संते बले संते वीरिए संते परिसरकारपरक्कमे चइऊणं उग्गाभिग्गहे अणि ययविहारे णीयावासमासइत्ता णं सिढिलीहोऊणं संजनाइसुटिठए पच्छा परिचिच्चा णं इह लोगपरलो गावायं अंगीकाऊण य सुदीहसंसारं तेसु चेत्र मढदेवउलेस अच्चत्थं गठिरे सुत्थिरे ममीकाराइकारेहिं णं अभिभूए सयमेव विचित्तमल्लदामाईहिं णं देवच्चणं काउमभुजए, जं पुण समय सारं परं इम सबण्णवयणं तं दूरसुदूरयरेण उझियं ।।
अर्थ--उस काल उस समय में जिन्होंने शास्त्र का सद्भाव देखा नहीं है और त्रिगौरवात्मक मदिरा से मत्त बनकर नाम मात्र के आचार्य महत्तरों ने श्रावकों से धन संग्रह कर करके स्तंभ सहस्त्रों पर खडे ऐसे ममता से अपने अपने जिनालय बनवाकर दुरन्त प्रान्त लक्षण वाले उन अधमाधमों को सोंपा और उन ने उन्हीं चैत्यालयों को अपना निवास स्थान बनाया और बल वीर्य पुरुषकार पराक्रम का त्याग कर उग्र अभिग्रह और अनियत विहार को छोड़कर शिथिल बनकर रहे, बाद में इस लोक परलोक के विघ्नों को और दीर्घसंसारभ्रमणों को अंगीकार करके उन्हीं देवकुल मठों में अत्यासक्त हो स्थिर होकर रहने लगे। ____ ममता, अहंकार आदि से इतने अभिभूत हो गये कि वे स्वयं विचित्र पुष्पमाला आदि से देवपूजन करने को तत्पर हो गये, सिद्धान्त का सार भूत जो हिंसा प्रतिषेधक आगम वचन था उसे दूर से भी दूर फेंक दिया।
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