________________
का लघुशरीर देखकर इन्द्र के मन में शंका उत्पन्न हुई, क्या इतने छोटे भगवान् इतने कलशों का जल सहन कर सकेंगे ? इन्द्र का मनोभाव जानकर भगवान् ने इन्द्र की गोद में से अपना बायाँ पग लंबाकर अंगूठे से मेरु को दबाया, पर्वत जोरों से कांपा और इन्द्र ने अपनी अल्पज्ञता के बदले में भगवान् से क्षमा मांगी।
उक्त प्रकार के मुक्तक अथवा मुक्तकों की बातें, कथानकों, चरित्रों, सूत्रों की चूणियों, टीकाओं में उपलब्ध होती हैं और विकीर्ण रूप में, एकत्रित नहीं, किसी भी मूल सूत्र में उक्त प्रकार के मुक्तक दृष्टिगोचर नहीं होते, परन्तु “जिणवरो गिरि चाले" यह मुक्तक निशीथ के मूल में उपलब्ध होता है, इससे यह बात निश्चित हो जाती है कि प्रस्तुत महानिशीथ असल महानिशीथ सूत्र नहीं, किन्तु पिछला किसी का बनाया हुआ कृत्रिम निबंध है।
६. अध्ययन--महानिशीथ के षष्ठ अध्ययन का नाम “गीतार्थ विहार' है। गीतार्य विहार के प्रारम्भ में ही नन्दीषण मुनि का वृत्तान्त “भयवं ता कीस दस पुवी नंदीसेणे महायसे पव्वज्ज चिच्चा गणियाए गेहं पविट्ठो” इस सूत्र से प्रारम्भ किया है । माया प्रकृति के ऊपर आसड साधु का दृष्टान्त है। मेघमाला आर्या और रज्जा आर्या के दृष्टान्तों के संक्षिप्तसार भी दिये हैं।
दशपूर्वधर नन्दीषणनन्दीषेण के विषय में सूत्रकार लिखते हैं
"भयवं ता कीस दस पुव्वी नंदीसेणे महायसे पव्वज्जं, चिच्चा गणियाए गेहं पविहो पमुच्चइ ।।"
"गोयमा तस्स य सिह मे, भोगहलं खलियकारणं । भवभयभीत्रो तहवि, दुयं सो, पन्चजमुवगरो॥ पायालमवि उढ्ढमुहं सग्गं होजा अहोमुहं । ण उणो केवलिपण्णत्तं, वयणं अण्णहा भवे ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org