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महानिशीथ में मुक्तक होने से यह सूत्र नहीं है
" बहुसुर हिगंधवासिय-कंच मणितु कल सेहिं । जम्मा हिसेयमहिमं, करेन्ति जह जिणवरो गिरिं चाले ||
जह इंदं वायरणं, भयवं वायरइ श्रवरिसोवि । जह गमइ कुमारतं, परिणे बोहिति जह य लोगंतिया देवा || "
अर्थात् - 'जिस प्रकार बहुत सुगंध गंध से वासित सुवर्ण-मणिमय बड़े कलशों से इन्द्रों ने जन्माभिषेक किया, जैसे जिनवर ने मेरु पर्वत को चलाया, जिस प्रकार आठ वर्ष की उम्र में भगवान ने “ऐन्द्रव्याकरण” कहा, जिस प्रकार से भगवान ने “कुमारावस्था " को बीताया, विवाह किया और जिस प्रकार लोकान्तिक देवों ने भगवन्त को दीक्षा लेने के लिए प्रतिबोध किया इत्यादि सर्व बातों का निरूपण करना है ।"
जैन सूत्रों की चूर्णियों - प्राचीन टीकाओं में लिखा है कि " जैन परम्परा में ५०० बातें ऐसी प्रचलित हैं, जो किसी भी सूत्र में नहीं है, केवल उनके प्रतिपादक मुक्तक हैं और इन मुक्तकोक्त बातों को प्रामाणिक माना जाता है, जैसे
( १ ) मरुदेवी माता के जीव का अनादि काल से निगोद से निकल कर मोक्ष जाना ।
(२) - " वर्ष देव कुणालायां दिनानि दश पंच च । मुष्टिप्रमाणधाराभिर्यथा रात्रौ तथा दिवा ||"
उक्त मुक्तक को बोलने से कुणाला में १५ दिन तक अतिवृष्टि हुई, कुणाला का विनाश हुआ और मुक्तक बोलने वाले कुरुड उत्कुरुड साधु जल प्रलय से मरकर नरक गति को प्राप्त हुए
( ३ ) भगवान महावीर को जन्माभिषेक के लिए इन्द्र मेरु पर्वत पर ले गये, और जलभरे कलशों का परिमाण और महावीर
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