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धर्म ) आदि शब्द-प्रयोग अर्वाचीन शैली के हैं, इनका व्यवहार प्राचीन साहित्य में नहीं होता था, इसी प्रकार स्तेन कथा, भ्रष्टाचार कथा आदि शब्द व्यवहार भी महानिशीथ का निर्माण काल अर्वाचीन ठहराता है । जैन शास्त्रों में ४ विकथाएं प्रसिद्ध हैं, परन्तु प्रस्तुत संदर्भ में ६ विकथाओं के उल्लेख हुए हैं जिनमें “स्तेन कथा" और "परिभ्रष्टाचार कथा” ये दो कथाएं देश की “अराजकता" और धर्मोपदेशक साधुओं की "प्राचार भ्रष्टता" को सूचित करती हैं, स्तेन कथा आठवीं नौवीं शती और आचार भ्रष्टता विक्रम की नवमी दशवी शती में पराकाष्ठा को पहुंच चुकी थी, यद्यपि इसकी नींव पांचवीं शती में ही लग चुकी थी, तथापि उत्तर भारत में श्रमण वर्ग के मूल गुणों को क्षति पहुंचाने वाली शिथिलता न होने पायी थी, दक्षिण भारत की स्थिति उत्तर भारत से एकदम भिन्न थी, मौर्यकाल से ही, उस प्रदेश में आजीविकादिनग्न सम्प्रदायों का मान था, दिगम्बर जैन सम्प्रदाय भी उत्तर में जन्म पाकर भी दक्षिण में जाकर पनपा था, आजीविक, दिगम्बर जैनों के अतिरिक्त श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय भी थोडे प्रमाण में उस प्रदेश में पहुंच चुका था और तत्कालीन राजशासकों को अपनी तरफ खींचकर अपने सम्प्रदाय का भक्त ही नहीं बनाते थे, बल्कि जैन चैत्यों के निर्माण का उपदेश और उनके निर्वाह के लिए भूमिदान का भी उपदेश करते थे और मंदिरों के साथ मठ बनवाकर वे स्वयं वहां रहते हुए उन जिन मन्दिरों की व्यवस्था में अपनी अध्यक्षता बना लेते थे और धीरे धीरे पक्के मठपति बन जाते थे, इसके परिणाम स्वरूप जनता प्रतिदिन उनकी टीका टिप्पणी ही नहीं बुराइयां तक करने लगी थी, यही वस्तु आगे जाकर “परिभ्रष्टाचार कथा' कहलाई। ____ "स्तेन कथा' की उत्पत्ति का आधार क्या है, यह बताना कठिन है, फिर भी दशवीं शती तक दक्षिण प्रदेश में बड़ी बड़ी राज्य सत्ताएं निर्बल बन गई थीं, एक दूसरी पर चढ़ाइयों करके अपनी सत्ता का दीपक जलता रखने की चेष्टाएं कर रही थीं इस
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