________________
८ ह
"तहा जेणं विभूसा कुसीले से वि योगहा- तं जहा ते लाभंगए, विमद्दण-संवाहण- सिणाणुवट्टणपरिहसण- तंबोल-धूवण - वासण - दसणु ग्घसण-समारहण- पुप्फोमालण- केससमारण- सोवाहण- दुव्वियढगई भणिर- हसरं- उबविट्ठिया-सण्णिवण्णेक्खिय-विभूसावत्ति - सविगारणियं सचरीय- पाउरण-दंडग- गहणमाई सरीरविभूसा कुसीले
ए ।"
अर्थ – 'तथा विभूषा कुशील भी अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे ---तेल मालिश कराने वाले, शरीरमर्दनकारक, शरीर दबवाने वाले, स्नान करने वाले, उद्धर्तन करवाने वाले, हंसी ठट्ठा करने वाले, तंबोल, धूपन, वासन, दातून करना, विलेपन करना, पुष्प सुंघना, बाल बनवाना, जूता पहनना, दुर्विदग्धगति से चलना, अधिक बोलने, हंसने वाला, क्षण क्षण में बैठने उठने वाला, लेटे लेटे सविकार दृष्टि से देखने वाले, शोभार्थं विकार जनक अधोंशुक पहनने वाले, शोभार्थ दण्ड आदि रखने वाले इत्यादिक को विभूषा कुशील जानना चाहिये ।
"एतेय पणउड्डाहरे दुरंतपंतलक्खणे, अट्ठव्वे, महापावकम्मकारी विभूसा कुसीले भवन्ति ।”
अर्थात् - 'उपर्युक्त विभूषा कुशील शासन की अतिशय हीलनाकारक अत्यन्त हीन लक्षण वाले, अद्रष्टव्यमुख और महापाप कर्मों के करने वाले होते हैं ?
"तहा योसणे जाणे, णेत्थं लिहिज्जइ, पासत्थे णाणमादीणं, सच्छंदे उत्तमनगामी, सबले णेत्थं लिहिज्जंति, गंथवित्थर - भयाओ, भगवया ण एत्थं पत्थावे कुसीलादओ महयापबंधेण पण्णविया । "
अर्थ – 'कुगुरुओं के निरूपण के प्रसंग पर सूत्रकार कहते हैंअवसन्नों का स्वरूप स्वयं जान लें, यहां लिखा नहीं जाता, पार्श्वस्थों का तात्पर्यार्थ ज्ञान दर्शनादि के पास में रहने वाले होता है उनको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org