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निबन्ध-निचय
की मण्डली से सतर्क रहने की प्रेरणा करने लगे। दिगम्बर सम्प्रदाय में आज जो तेरह पन्थी कहलाते हैं उन्हें इन्हों आध्यात्मियों के अवशेष समझने चाहिए।
इन आध्यात्मियों का मुख्य सिद्धान्त साधु को जरूरी वस्त्र पात्र रखना, केवली का कवलाहार करना और स्त्री का उसी भव में मोक्ष जाना, इन तीन श्वेताम्बर सम्प्रदाय के सिद्धान्तों से विरोध करना था। उपाध्यायजी ने इन तीनों बातों का समर्थन किया है। प्रारम्भ में आध्यात्म की व्याख्या करके उक्त बनारसीदास को नाम अध्यात्मी माना है और अनेक तार्किक युक्तियों से जैन श्रमणों को आवश्यक संयम के उपकरण रखने पर भी मोक्ष प्राप्ति होना बताया है। केवली का परमौदारिक शरीर मानने पर भी कवल आहार के बिना वह शरीर टिक नहीं सकता यह बात प्रमाणित की है। ग्रन्थ के अन्त भाग में श्वेताम्बरों की मान्यतानुसार स्त्री को चारित्र पालने से उसी भव में मुक्ति प्राप्त हो सकती हैं इसमें कोई बाधक नहीं है ।
उपर्युक्त तीन सिद्धान्तों का सविस्तार प्रतिपादन करके उपाध्यायजी ने अपने ग्रन्थ को समाप्त किया है ।
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