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निबन्ध-निचय
"विजयदेव-माहात्म्य" में जिस प्रकार ग्रन्थ-कर्ता की अनेक स्खलनाएँ दृष्टिगोचर होती हैं, इससे भी अधिक भूलें इसके सम्पादक मुनि जिनविजयजी के अनाभोग अथवा अज्ञान की इसमें दृष्टिगोचर होती हैं । ऐसे ऐतिहासिक ग्रन्थ के सम्पादन में सम्पादकीय भूलों का रहना बहुत ही अखरता है। यदि इस ग्रन्थ का शुद्धि-पत्रक बनाया जाय तो लगभग एक फॉर्म का मेटर बन सकता है, परन्तु ऐसा करने का यह योग्य स्थल नहीं है।
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