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श्री नमस्कार माहात्म्य
श्री सिद्धसेनाचार्य विरचित
नमस्कार माहात्म्य नाम के आज दिन तक २ ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। एक के कर्त्ता हैं आचार्य " देवेन्द्र सूरि" तब दूसरे के कर्त्ता हैं "सिद्ध. सेन सूरि" । यहाँ हम सिद्धसेन कृत 'नमस्कार माहात्म्य' का अवलोकन लिख रहे हैं ।
इस माहात्म्य की वर्णन - शैली साधारण और अर्वाचीन है, इसमें आने वाले देव-देवियों के नाम बताते हैं कि यह कृति १५वीं शती के पूर्व की नहीं, इसका कर्त्ता "सिद्धसेन" सम्भवतः १४३३ में होने वाले "नाएक गच्छीय सिद्धसेन" हैं जो चैत्यवासी थे । यह ग्रन्थ "सिरि सिरिवाल कहा " जो १५वीं शताब्दी के प्रथम चरण में बनी है, उसके बाद का है । इसके अन्तर्गत अनेक विधानों पर दिगम्बरीय भट्टारकों का असर है । कहीं कहीं तो श्वेताम्बर सम्मत बातों का प्रतिपादन भी इसमें दृष्टिगोचर होता है, जैसे – ११ रुद्रविषयक मन्तव्य, लक्ष नत्रकार जाप से तीर्थङ्कर नाम कर्म का निर्माण होने की बात विक्रम की सोलहवीं शती से पूर्व - कालीन किसी भी ग्रन्थ में हमारे देखने में नहीं आई। इसमें दिए हुए अधिकांश देवियों के नाम १५वीं शताब्दी की प्रतिष्ठा विधियों में मिलते हैं " अष्टो कोट्यः" इत्यादि श्लोक में जाप सम्बन्धी जो बात कही है वह शान्ति घोषण की एक गाथा का अनुवाद मात्र है, जो शान्ति घोषणा पन्द्रहवीं शती के अनन्तर की है । पांच नमस्कार उच्चारण के समय जो विधि और मुद्रा वताई है, वह अनागमिक है । जाप किसी भी मुद्रा से होता है, इस बात का लेखक को ज्ञान नहीं था, इसी से यह ऊटपटाङ्ग विधि लिख बैठे हैं । इन सब बातों पर विचार
तथा उसके बाद की
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