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निबन्ध-निचय
करने से यही ज्ञात होता है कि ८-६ सिद्धसेनों में से १४३३ में होने वाले अथवा १५९३ वर्ष वाले सिद्धसेन इन दो में से कोई एक हो सकते हैं, ये दोनों प्राचार्य चैत्यवासी थे और इनका गच्छ “नारणकीय' अथवा "नारणावाल" कहलाता था। अन्तिम श्लोक में "नमस्कार-माहात्म्य'' की रचना सिद्धपुर नगर में होने का उल्लेख किया है, इसके अतिरिक्त अपने समय का अथवा गच्छ का कोई परिचय नहीं दिया ।
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