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________________ ४२ : निबन्ध-निश्चय जन्मे त्रिभुवनपाल नामक अपने पुत्र को राज्यासन पर बैठाकर स्वयं "सिद्धचक्र" की स्तवना में लीन हुआ । लेखक ने "सिद्धचक्र" के प्रत्येक पद की नव नव गाथाओं में स्तवना कराई है । उसके बाद नव पद के ही ध्यान में लीन होकर प्रायुष्य पूर्ण कर श्रीपाल नवम देवलोक में देवगति को प्राप्त हुआ । राज्यप्राप्ति के समय श्रीपाल की कितनी उम्र हुई थी और राज्य - त्याग के उपरान्त वह कितने वषों तक जीवित रहा, इसका कुछ भी सूचन नहीं किया | वर्तमान चतुर्विंशति तीर्थङ्करों में से किस तीर्थङ्कर के धर्मशासन काल में यह राजा हुआ इस विषय में भी कथालेखक ने कहीं भी निर्देश नहीं किया । इन बातों से स्पष्ट हो जाता है कि " श्रीपालकथा " पोमाहात्म्य सूचक प्रोपदेशिक कथा है, चरित्र नहीं । कथाकार ने श्रीपाल के मुख से उद्यापन के देव वन्दन के प्रसंग पर जो नवपद की स्तवना कराई, राज्यत्याग के बाद प्रत्येक पद की नव-नव गाथाओं से जो स्तवना कराई और भगवान् महावीर के मुख से नवपद का जो स्वरूप प्रतिपादन कराया, उन सभी गाथायों को सामने रखकर उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने नवपद की पूजा का अपने समय की भाषा में निर्मारण किया है, जो श्वेताम्बर परम्परा में प्रति प्रसिद्ध है । श्री श्रीपाल - कथा को पढ़कर उसके सम्बन्ध में कुछ लिखने योग्य बातें ऊपर के अवलोकन में लिखी है। हमारी इच्छा "सिद्धचक्र" की पूजा तथा मव पद की तपस्या में विशुद्धता आए ऐसी है, न कि इसको किसी प्रकार की हानि पहुंचाने की। आजकल इस कथा के नाम को आगे रखकर "सिद्ध चक्र यन्त्रोद्धार पूजन विधि ” जैसे नये नये अनुष्ठानों की सृष्टि हो रही है, जो सिद्धचक्र के पवित्र पूजन तथा तद्विषयक तप को कलंकित करने वाली है। आशा की जाती है कि इस अवलोकन को पढ़कर नवीन पूजन विधियों का प्रचार करने वाले सज्जन इनका वास्तविक स्वरूप समझेंगे और इसके प्रचार को रोकेंगे । सिरिवज्ज से रण गरगहर पट्टप्पहु हेम तिलयसूरीगं । सीसेहि रयरणसेहर- सूरीहि इमा हु संकरिया ॥ १३४० ॥ तस्सीस हेमचंदेल, साहुणाविक्कमस्स वरिसंमि । चदस अट्ठावीसे लिहिया गुरु-भत्तिकलिएण ॥ १३४१ ॥ " $4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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