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निबन्ध-मिचय
खोचड़ी पकाली है क्योंकि इसमें से बहुत सी बातें दिगम्बर सम्प्रदाय को मान्य नहीं हैं। तब कुछ बातें श्वेताम्बर मान्यता से भी विरुद्ध पड़ती हैं । सिद्धचक्र के अधिष्ठायकों को कूष्माण्ड फल चढ़ाने की बात पौराणिक पद्धति से ली गई है, जो दोनों परम्पराओं को मान्य होने में शंका है।
उद्यापन की समाप्ति में श्रीपालकथा-लेखक श्रीपाल द्वारा सार्मिक वात्सल्य तथा संघपूजा करवाते हैं । वे लिखते हैं
"वज्जंतएहिं मंगल-तूरेहिं सासणं पभावंतो ।। साहम्मियवच्छल्लं, करेइ वरसंघपूयं च ॥ १२११॥"
उपर्युक्त गाथोक्त बादित्रवादन सार्मिकवात्सल्य संघपूजा १४-१५ वीं शताब्दी के विशेष प्रसिद्ध कर्तव्य हैं। इससे जाना जाता है कि इस कथा का मूल आधार ग्रन्थ दो सम्प्रदायों में से किसी एक सम्प्रदाय का रहा भी हो तो भी वह अर्वाचीन था, प्राचीन नहीं । लेखक राजा श्रीपाल की राज्यऋद्धि का विस्तार बताते हुए कहते हैं
" गय-रह-सहासनवगं नव लक्खाइं च जच्चतुरयारणं ।
पत्तीणं नव कोडी, तस्स नरिवस्स रज्जंमि ॥ १२१४ ॥" प्रर्थात्-राजा श्रीपाल की सेना में ९००० हाथी, ६००० रथ, नव लाख जात्य घोड़े और नव करोड़ पैदल सैनिक थे ।
____ उपर्युक्त कथन में कितनी अतिशयोक्ति है इसके सम्बन्ध में मैं अपना अभिप्राय न देकर इतना ही कहूंगा कि श्रीपाल को लेखक ने अंग देश का राजा बताया है । उसने अपना राज्य प्राप्त करने के उपरान्त अन्य किसी भी देश अथवा मंडल पर चढ़ाई कर विजय करने का लेखक ने नहीं लिखा। इस दशा में श्रीपाल के पत्ति-सैन्य की संख्या नव करोड़ थी तो उसके देश अंग में कुल जनसंख्या कितनी थी, यह भी कथा-लेखक ने बता दिया होता तो इस कथा की वास्तविक सत्यता पर बहुत अच्छा प्रकाश पड़ जाता।
कथाकार ने श्रीपाल का राजत्व-काल सम्पूर्ण ६०० वर्ष का बताया है। उक्त समय के उपरान्त श्रीपाल अपनी प्रथम रानी मदनसुन्दरी की कोख से
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