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________________ ४० : निबन्ध-निचय ___ ऊपर मैं ने श्रीपालकथा में लिखे हुए नवपद पाराधन तप के उद्यापन का प्रायः शब्दशः सारांश दिया है। घी खाण्ड के साथ नारियल के गोलों का चढ़ाना अथवा भिन्न-भिन्न मणिरत्न मोतियों के साथ गोलों का चढ़ाना श्वेताम्बर परम्परा की मान्यता के अनुरूप है या नहीं, इसका निश्चित निर्णय तो नहीं दिया जा सकता परन्तु जहाँ तक मैंने श्वेताम्बर सम्प्रदायमान्य विविध तपों के विधानों और उनके उद्यापनों की विधियाँ पढ़ी हैं उनमें उक्त उद्यापन के समान अन्य किसी तप की उद्यापनविधि में घी खांड तथा विविध रत्नों के चढ़ाने का पाठ नहीं पढ़ा । ज्ञान-दर्शन-चारित्र के उपकरण उद्यापन में रखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त दूसरे भी अनेक उपकरण रत्नत्रयी की वृद्धि के लिए रखे जाते हैं । फल-मेवा नैवेद्य पूजोत्सव में रखे जाते हैं, उद्यापन में नहीं। विविध मणिरत्नों का तो क्या, रुपया पैसा भी तीर्थंकरों की पूजा-प्रतिष्ठा में चढ़ाने का हमारे प्राचीन ग्रन्थकारों ने विधान नहीं किया, सुगन्धी.गन्धों पुष्पों, धूपों, दीपों, नैवेद्यों, अक्षतों, और जल पदार्थों से ही परमेष्ठी पदों की पूजा-भक्ति करने का हमारा प्राचीन साहित्य प्रतिपादन करता है। पूजा-प्रतिष्ठा उद्यापनों में कीमती धातुओं के पदार्थ अथवा रुपया पैसा चढाने की पद्धति शास्त्रीय अथवा संविन्ग गीतार्थाचरित नहीं, किन्तु चैत्यों की व्यवस्था करने वाले शिथिलाचारी साधुओं, परिग्रह धारी श्रीपूज्यों, यतियों तथा दिगम्बर भट्टारकों की है। प्राचारदिनकर' ग्रन्थ, जो दिगम्बर भट्टारकों तथा चैत्यवासी श्वेताम्बर शिथिल साधुओं की मान्यताओं का विक्रमीय १५ वीं सदी का संग्रह है, इसमें प्रतिष्ठा तथा अन्य विधानीय स्थापन पूजन में मुद्रा अर्थात् रुपया-पैसा चढ़ाने का सर्व प्रथम विधान मिलता है। इसके पूर्ववर्ती किसी भी प्रतिष्ठा-विधि में पूजा-पदार्थों के साथ मुद्रा चढ़ाने का उल्लेख देखा नहीं जाता। इससे प्रमाणित होता है कि "सिरिसिरिवाल कथा" में लिखी हुई नवपद-पूजा विधि तथा उद्यापन विधि विक्रम की १५ वीं शती के पूर्व की नहीं है । या तो रत्न-शेखर सूरि को किसी दिगम्बर भट्टारकजी का "सिद्ध चक्रपूजा" विषयक कोई विधान हाथ लगा है, जिसके सहारे से कुछ दिगम्बरीयता और कुछ श्वेताम्बरीयता प्रतिपादक बातों का सम्मिश्रण करके यन्त्रोद्धार तथा उद्यापनविधि की यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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