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निबन्ध-निचय
३४ हीरक सहित गोला चढ़ाया । सिद्ध के पद पर केसर रंग से रंजित तथा ८ माणिक्य और ३४ प्रवालों से जड़ित गोला स्थापित किया । आचार्य के पद पर केसर - चन्दन से विलिप्त और ५ गोमेद तथा ३६ सुवर्णपुष्पों के साथ गोलक चढ़ाया । चौथे उपाध्याय पद पर नागवल्लीपत्र के समान नीलवर्ण का गोला, चार इन्द्रनील मणियों और २५ मरकत मणियों के साथ स्थापित किया । पांचवें श्याम रंग के साधु पद पर कस्तूरीरञ्जित गोलक पाँच राज- पट्ट रत्न और २७ अरिष्ट रत्नों के साथ स्थापित किया । शेष दर्शन - ज्ञान - चारित्र और तप इन चार श्वेत पदों पर चन्दनविलिप्त गोलक क्रमशः सड़सठ, इक्कावन, सत्तर और पचास मौक्तिकों के साथ स्थापित किये । इसके अतिरिक्त नवपद के उद्देश्य से पदों के वर्णानुसार मेरु सहित मांला वस्त्रादि वहाँ चढ़ाये । सोलह श्रनाहतों में एक-एक खड़ी - शाकर के अनेक रत्नों से युक्त लिङ्ग रखे । आठ वर्गों के ऊपर एक-एक सोने की कचोली रखकर उनमें क्रमश: छः तक १६-१६ और सातवें आठवें वर्ग की कचोली में ३२ ३२ सुन्दर द्राक्षाओं को रखा और वर्गान्तरगत ग्राठ परमेष्ठी पदों पर खारकों का एक-एक पुंज किया, और ग्राठ गुरुपादुकाओं पर अनार चढ़ाये । जया जम्भादि ग्राठ देवियों के स्थानों पर नारंगियाँ चढ़ाई । सिद्धचक्र के चार अधिष्ठायकों के पद पर कूष्मांड फल चढ़ाये | १६ विद्या देवियों, २४ यक्षों, और यक्षिणियों को सुपारियाँ चढ़ाई | चार द्वारपालों के पदों पर पीतवर्ण के नैवेद्य के ढेर किये और चार वीरों के पदों पर चार कृष्णवर्ण नैवेद्य के ढेर किये । नव निधियों के स्थानों पर विचित्र रत्नों से परिपूर्ण सुवर्णमय नव कलश धरे और नवग्रह, दिक्पालादि को उनके वर्णानुसार फल पुष्पादि चढ़ाये |
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उक्त पुकार से उद्यापन की स्थापना कराने के उपरान्त राजा ने स्नानमहोत्सव प्रारम्भ किया । स्नानविलेपनादि अष्टप्रकार की पूजा-विधि पूरी करके आरात्रिक-मंगल के अवसर पर संघ ने श्रीपाल को मंगल-तिलक किया और माला पहनाई। इसके बाद श्रीपाल ने “ जो धुरि - सिरि- प्ररिहन्त इत्यादि चैत्यवन्दन कर नवपद का स्तवन किया ।
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