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________________ ३६ : निबन्ध-निचय सम्यकू-चरित्र और सम्यक्-तप इन नवपदों से बनता है। इन नवपदों से बने हुए यन्त्र को पूर्वाचार्य “सिद्ध-चक्र' कहते हैं "एएहिं नवपएहिं, सिद्धं सिरिसिद्धचक्कमेयं जं । तस्सुद्धारो एसो, पुवायरिएहिं निद्दिट्टो ॥६५॥" उपर्युक्त गाथा में कथालेखक मुनिचन्द्र सूरि के मुख से कहलाते हैंमैं तुझे जो यन्त्र दे रहा हूं, इसका उद्धार पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार किया है मुनिचन्द्र सूरि जो श्रीपाल तथा मदना के समय विद्यमान थे, पूर्वाचार्यों द्वारा यन्त्रोद्धार होना बताते हैं। कथालेखक कथा के अन्त में श्रीपाल का आयुष्य ६०० वर्ष से अधिक होना बताते हैं, इससे ज्ञात होता है कि श्रीपाल आयुष्य के लिहाज से श्री नेमिनाथ तीर्थङ्कर के बाद के होने चाहिए, जब कि "सिद्धचक्र-यन्त्रोद्धार पूजन विधि" के सम्पादक इन्हें ११ लाख वर्ष पहले के मानते हैं। यहाँ पर यह कहना प्रासंगिक होगा कि ११ लाख वर्ष पहले अथवा नेमिनाथ के तीर्थकाल में भारतवर्ष में यन्त्र-मन्त्र की चर्चा तक नहीं थी। उस समय तो क्या, भगवान् महावीर के शासन में भी, जैनों में आज से १५०० वर्ष पहले मन्त्र-तन्त्रादि की चर्चा नहीं थी। यद्यपि बौद्ध सम्प्रदाय में विक्रम की चौथी पाँचवीं शती में तान्त्रिक मान्यताओं का प्रवार चल पड़ा था, तथापि जैन समाज उससे सैंकड़ों वर्षों तक बचा रहा। जैन सूत्रों में से केवल "महानिशीथ" में कुछ देवताओं के यन्त्रों के संकेत मिलते हैं, परन्तु महानिशीथ विक्रम की नवमी अथवा दशवीं शताब्दी का सन्दर्भ है। जैन-श्रमरणों में इसी समय के बाद धीरे धीरे मन्त्रवाद का प्रचार हुआ है । इस स्थिति में श्रीपाल के समकालीन मुनिचन्द्र मुनि के मुख से पूर्वाचार्यों द्वारा यन्त्रोद्धार होने की बात कहलाना कहां तक ठीक हैं, इसका निर्णय मैं अपने पाठकों पर छोड़ता हूं। १-"सिद्धचक्र-यन्त्रोद्धार" बताते हए कथाकार कहते हैं-'सर्वप्रथम वलय में बीजाक्षरों के साथ 'अहं' पद का न्यास कर उसका ध्यान करो, यह सिद्धचक्र यन्त्र का पीठ है। इसको परिवेष्टित करते हुए द्वितीय घलय में पूर्वादि दिशाओं में सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु इन चार पदों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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