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________________ निबन्ध-निचय होता । कथालेखक कहते हैं-लाभ विशेष जानकर भगवान् ने गौतम को प्रागे भेजा, परन्तु किस लाभ की दृष्टि से आगे भेजा, इसका तो सूचन तक भी नहीं करते। न सारा कथानक पढ़ लेने पर भी ऐसा कोई लाभ दृष्टिगोचर होता है, जो गौतम के आगे न जाने पर न होता। दूसरी बात यह है कि भगवान् महावीर जव कभी राजगृह पधारते, गुणशिलक चैत्य में जो राजगह के ईशान दिग्-विभाग में था-ठहरते थे, तब इस कथा की भूमिका में गुणशिलक का नाम-निर्देश नहीं है और राजगृह के परिसर में विपुलाचल और वैभारगिरि नामक दो पर्वत होना लिखा है। इससे मैं अनुमान करता हूं कि कथा की प्रस्तावित भूमिका की पसन्दगी श्वेताम्बर परम्परा के विद्वान् को न होकर किसो दिगम्बर जैन विद्वान् की होने का विशेष सम्भव है क्योंकि अनेक दिगम्बरीय ग्रन्थों में भगवान महावीर के वैभार अथवा विपुलाचल पर्वत पर रहते हुए उपदेश देने का वर्णन मिलता है, तब गुणशिलक वन में समवसरण होने का उनमें वर्णन नहीं आता। गौतम स्वामी को पहले भेजना और भगवान् के पीछे जाने की बात कहना, इसमें भी हमें तो एक रहस्य प्रतीत होता है। वह यह कि श्वेताम्बर-परम्परा के आगमों में, मध्यकालीन इतर साहित्य में और दिगम्बर परम्परा के प्राचीन साहित्य में श्रीपाल कथा उपलब्ध नहीं होती, इससे कथानिर्माता ने यह कथानक आगमों में न होने पर भी गणधरभाषित और तीर्थङ्करअनुमोदित है, ऐसा प्रमाणित करने के लिए इसका उपदेश गौतम गणधर के मुख से करवाया है। कथापीठ में लेखक ने मगध देश को जैनों के लिए विशेष तीर्थ-भूमि होना लिखा है। यह बात भी श्वेताम्बर जैन परम्परा के अनुकूल नहीं है, ऐसा मेरा मन्तव्य है। क्योंकि श्वेताम्बर परम्परा के किसी भी प्राचीन साहित्य में किसी भी देश को विशेष तीर्थ रूप में नहीं माना है। यद्यपि भगवान् महावीर का अधिक विहार मगध देश में हुआ है और अधिक वर्षाकाल भी इसी देश में व्यतीत हुआ है, फिर भी श्वेताम्बरीय जैन परिभाषा के अनुसार मगध को विशेष तीर्थ कहना योग्य नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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