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________________ श्री श्रीपाल-कथा अवलोकन ले० : पं० कल्याणविजय गणि १) कथाभूमिका और कथापीठ : __ श्वेताम्बर जैन परम्परा में "सिद्धचक्र" की आराधना का फलप्रदर्शक श्रोपाल राजा का कथानक सबसे प्राचीन है। यों तो श्वेताम्बर तथा दिगम्बर परम्पराओं में संस्कृत में तथा प्राचीन हिन्दी, गुजराती भाषाओं में निर्मित अनेक श्रीपाल चरित्र उपलब्ध होते हैं, परन्तु वे सभी सोलहवीं शताब्दी के अथवा बाद के हैं। प्रस्तुत श्रीपाल-कथा विक्रम की पन्द्रहवीं शती के प्रारम्भ में बनी हुई प्राकृत-कथा है। इसमें कुल १३४२ गाथाएँ हैं। इसकी रचना नागोरी तपागच्छीय आचार्य श्री रत्नशेखर सूरिजी ने १४२५ के लगभग में की है। ___इस कथा का सर्वप्रथम उपदेश भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतम गणधर से करवाया है और कथा की समाप्ति के समय भगवान् महावीर राजगृह के निकटवर्ती किसी गांव से राजगृह के उद्यान में पधार कर गौतम द्वारा उपदिष्ट "नवपदात्मक सिद्ध चक्र" के स्वरूप को निश्चय नय के अनुसार प्रतिपादन करते हैं । इस कथानक की भूमिका में दो बातें विचारणीय हैं-एक तो जब कभी भगवान् महावीर राजगृह के परिसर में पधारते, अपने संघ के परिवार के साथ ही पधारते। गौतम अथवा अन्य किसी गणधर को आगे भेजकर बाद में स्वयं जाना इसका उदाहरण इस कथा के अतिरिक्त अन्य किसी अर्वाचीन या प्राचीन चरित्रों तथा सूत्रों में दृष्टिगोचर नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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