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निबन्ध-विचय
(१७) लघ्वाश्वलायन - स्मृति : इसमें २४ प्रकरण हैं तथा ७४२ श्लोक हैं : (१८) लिखित - स्मृति :
इस स्मृति में ९६ श्लोक हैं ।
(१६) वसिष्ठ-स्मृति : इसमें ३० अध्याय और ७७६ श्लोक हैं । (२०) वृद्ध शातातप- स्मृति :
इसमें ६८ श्लोक हैं ।
(२१) वृद्धहारीत - स्मृति :
इसमें ११ अध्याय तथा २७६१ श्लोक हैं ।
हारीत - स्मृति संभवतः दाक्षिणात्य वैष्णव सम्प्रदायों की उत्पत्ति के बाद की ग्यारहवीं बारहवीं शती की बनी हुई प्रतीत होती है । इसमें गोपीचन्दन का भी उल्लेख मिलता है । इतना ही नहीं अन्य वैदिक शैव सम्प्रदायों पर भी स्थान-स्थान पर कटाक्ष किये हैं और उन्हें लोकायतिक तक कह डाला है ।
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(२२) वेदव्यास-स्मृति :
केवल चार अध्याय तथा २७५ श्लोक हैं ।
(२३) शंखलिखित - स्मृति :
इसमें ३२ श्लोक हैं ।
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(२४) शंख-स्मृति :
पृ० ३७५ - " षष्ठेऽष्टमे वा सीमन्तो, जाते वै जातकर्म च । आशौचे च व्यतिक्रान्ते, नामकर्म विधीयते ॥ २ ॥ | "
इसमें श्लोक ३७३ हैं और १८ अध्याय हैं ।
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(२५) शातातप-स्मृति :
इस स्मृति में २६५ श्लोक हैं तथा छ: अध्याय हैं और विषय कर्मविपाक है ।
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