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ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य
शांकर भाष्य बादरायण ( महर्षि व्यास ) कृत ब्रह्म - प्रतिपादक सूत्रों पर विस्तृत भाष्य है । इसे शारीरिक मीमांसा - भाष्य भी कहते हैं, इसके प्रथम अध्याय में निर्गुण सगुण आदि ब्रह्म के स्वरूप का विद्वत्तापूर्ण प्रतिपादन किया है ।
दूसरे अध्याय के प्रथम पाद में सांख्य, करणाद, योगादि दर्शनों की चर्चा करके, उनसे ब्रह्मवाद का श्रेष्ठत्व प्रतिपादन किया है । दूसरे पाद में सांख्य; करणाद परमाणुवाद, ईश्वरकारणिक, चार्वाक, मीमांसक और बौद्धों के क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, आर्हत दर्शन के स्यादवाद, सप्तभंगी, भागवत, पाशुपत मतों की मीमांसा करके सब को दोषयुक्त बताया है । तीसरे पाद में महाभूतों की उत्पत्ति सृष्टिसर्ग-प्रलय आदि बातों की मीमांसा की है और इसके सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न अभिप्राय व्यक्त करने वाले उपनिषद् - वाक्यों का समन्वय करने की चेष्टा की गई है। आश्मरथ,
डुलोमि, काशकृत्स्न आदि आचार्यों के मतों का निर्देश करके, जिनके साथ अपने मत का साम्य देखा उसे श्रुति-सम्मत ठहराया और अन्यान्य मतों की उपेक्षा की है । चतुर्थ पाद में इन्द्रियादि पदार्थों का निरूपण करने वाले परस्पर विरोधी श्रुतिवाक्यों का समाधान करने की चेष्टा की गई है ।
शंकराचार्य विरचित
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तीसरे अध्याय के प्रथम पाद में, जीव के परलोकगमन सम्बन्धी चर्चा करके वैराग्य का प्रतिपादन किया है । दूसरे पाद में " तत्" तथा “त्वम्'' शब्दों की व्याख्या की है । तीसरे के तीसरे पाद में भिन्न-भिन्न वैदिक शाखाओं के मन्तव्यों का निरूपण करते हुए उनके पारस्परिक
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