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निबन्ध-निचय
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साँख्य दर्शन में कतिपय शब्द जैन पारिभाषिक शब्दों से मिलते-जुलते
हैं, जैसे- " सम्यग्ज्ञान, केवल ज्ञान" आदि । मोक्ष के लिए "कैवल्य, अपवर्ग, मोक्ष' आदि शब्दों का व्यवहार किया जाता है ।
सांख्य दर्शन का प्रतिपादक शास्त्र " षष्टितन्त्र" कहलाता है । इसका कारण (६०) साठ पदार्थों का प्रतिपादन है । वे साठ पदार्थ ये हैं(१) अस्तित्व, (२) एकत्व), (३) अर्थत्व, (४) पारार्थ्य, (५) अन्यत्व, (६) निवृत्ति, (७) योग, (८) वियोग, (६) पुरुषबहुत्व (१०) स्थितिः । पांच विपर्यय, २८ शक्ति, तुष्टि सिद्धि । इन साठ (६०) पदार्थों का वृत्तिकार ने वृत्ति में परिचय दिया है ।
सांख्य दर्शन में प्रमाण तीन माने गये हैं— प्रत्यक्ष ( चाक्षुषज्ञान), अनुमान (शेष इन्द्रियजन्य ) और श्रागम ( ब्रह्मादि वाक्यात्मक वेद, सनकादि वाक्यात्मक शास्त्र प्राप्त वाक्य ) ।
मूल कारिकाकार ईश्वरकृष्ण एक प्राचीन दर्शनकार हैं । इनका निश्चित समय जानने में नहीं आया । वृत्तिकार माठराचार्य का समय विक्रम की पांचवीं शती का उत्तरार्ध होना अनुमान करते हैं, यह इनका पूर्ववर्ती समय का स्तर है । इससे अर्वाचीन हो तो आश्चर्य नहीं । वृत्ति में उपनिषत्कारों के वेदान्त का एक दो स्थल पर उल्लेख अवश्य श्राया है, परन्तु शंकराचार्य के ब्रह्मवाद का प्रचार होने के पूर्व की यह वृत्ति है यह निश्चित है ।
माठराचार्य वैदिक यज्ञादिक के कट्टर विरोधी थे, ऐसा इनके "यूपं छित्त्वा" इत्यादि श्लोकों के पढ़ने से ज्ञात होता है । फिर भी माठराचार्य ने "पातञ्जल योगशास्त्र" की बातों के उल्लेख किये हैं, इससे ज्ञात होता है ये पतञ्जलि के मत से अनुकूल थे ।
माठराचार्य ने अपनी वृत्ति में सांख्य दर्शन के उपदेशकों की परम्परा इस प्रकार लिखी है- " महर्षि कपिल - श्रासुरि- पंचशिख - भार्गव-उलूकवाल्मीकि - हारित – देवल" इत्यादि से ज्ञान आया तथा ईश्वरकृष्ण ने प्राप्त किया ।
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