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________________ निबन्ध-निचय : ३०५ कि पहले वे यापनीय संघ के अन्तर्गत थे। यापनीय श्रमण, कल्पसूत्र, दशवकालिक, उत्तराध्ययन आदि श्वेताम्बर जैनसूत्रों को मानते थे। इसी कारण से इन्होंने अपने इस पुराण में श्वेताम्बर सूत्र ग्रन्थों के संस्कृत में नाम निर्देश किये हैं। इतना ही नहीं, कहीं कहीं तो गाथाओं और उनके चरणों के संस्कृत भाषान्तर तक कर दिये हैं। दशम सर्ग के १३४, १३५, १३६, १३७, १३८ तक के पाँच श्लोकों में अंगबाह्य श्रुत का वर्णन करते हुए आपने लिखा है कि "दशवैकालिक सूत्र'' साधुओं की गोचरचर्या की विधि बतलाता है। "उत्तराध्ययन" सूत्र वीर के निर्वाणगमन को सूचित करता है। 'कल्प-व्यवहार'' नाम का शास्त्र श्रमणों के प्राचारविधि का प्रतिपादन करता है और अकल्प्य सेवना करने पर प्रायश्चित्त का विधान करता है । “कल्पाकल्प" संज्ञक शास्त्र कल्प और अकल्प दोनों का निरूपण करता है। "महाकल्प सूत्र'' द्रव्य-क्षेत्रकालोचित साधु के प्राचारों का वर्णन करता है, "पुण्डरीक" नामक अध्ययन देवों की उत्पत्ति का और "महापुण्डरीक'' अध्ययन देवियों की उत्पत्ति का प्रतिपादन करने वाला है और "निषद्यका" नामक शास्त्र प्रायश्चित्त की विधि का प्रतिपादन करता है। इस प्रकार अंगबाह्य श्रुत का प्रतिपादन किया। कवि जिनसेन का उपर्युक्त निरूपण अर्धसत्य कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें कोई कोई बात श्वेताम्बरों की मान्यतानुसार है। तब कोई उसके विरुद्ध भी, :‘दशवैकालिक'' के विषय में इनका कथन श्वेताम्बरीय मान्यतानुगत है, तब उत्तराध्ययन के सम्बन्ध में जो लिखा है वह यथार्थ नहीं। उत्तराध्ययन में महावीर के निर्वाण गमन सम्बन्धी कोई बात नहीं है, परन्तु कल्प सूत्र में ३६ अपृष्ट व्याकरण के अध्ययनों की जो बात कही है, उसके ऊपर से उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययन मानकर वीर के निर्वाण गमन की बात कह डाली है। 'कल्प व्यवहार' नामक शास्त्र को एक समझ कर इसका तात्पर्य आपने समझाया, परन्तु वास्तव में "कल्प' तथा "व्यवहार" भिन्न-भिन्न हैं। पहले में प्रायश्चित्तों की कल्पना और दूसरे में उनके देने की मुख्यता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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