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निबन्ध-निचय
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सभी गणधरों ने राजगृह के गुरणशिलक उद्यान में ही अनशन करके निर्वाण प्राप्त किया था। तब महावीर के सैकड़ों साधुओं ने वैभार पर्वत और विपुलाचल पर अनशन करके परलोक प्राप्त किया था। इससे ज्ञात होता है कि महावीर जहां ठहरते थे वहां से वैभार और विपुलाचल निकटवर्ती थे।
११वें सर्ग के ६५वें श्लोक में कवि ने भारत के मध्य-देशों का वर्णन करते हुए सोल्व, श्रावृष्ट, त्रिगत, कुशाग्र, मत्स्य, कुणीयान्, कोशल, मोक नामक देशों को मध्यदेशों में परिगणित किया है, जो यथार्थ नहीं है। इन नामों में से पहला नाम भी गलत है। देश का नाम सोल्व नहीं किन्तु "साल्व" है और यह प्राचीनकाल में पांच विभागों में बंटा हुआ था और पश्चिम भारत में अवस्थित था। अन्य प्रमाणों से "प्रावृष्ट" देश के अस्तित्व का ही समर्थन नहीं होता। त्रिगत देश भारत के मध्यभाग में नहीं किन्तु नैऋत कोण दिशा में था, ऐसा प्राचीन संहितामों से पता लगता है। "कौशल" भी उत्तर भारत में माना गया है, मध्यभारत में नहीं और "मोक' देश तो पश्चिम में था। आज के पंजाब से भी काफी नीचे की तरफ, उसको भी मध्यभारत में मानना भूल ही है और 'कुणीयस्' देश का अन्यत्र कहीं उल्लेख नहीं मिलता। “काक्षि, नासारिक, अगत, सारस्वत, तापस, माहेभ, भरुकच्छ, सुराष्ट्र और नर्मद" इन देशों को पश्चिम दिशा के देश माने हैं। "दशार्णक, किष्किन्ध, त्रिपुर, आवर्त, नैषध, नेपाल, उत्तमवर्ण, वैदिश, अन्तप, कौशल, पत्तन, और विविहाल' ये विन्ध्याचल के पृष्ठ भाग में थे और "भद्र, वत्स, विदेह, कुशभंग, सैतव, वज्रखण्डिक" ये देश मध्यभारत के सीमावर्ती माने हैं ।
पश्चिम दिशा के देशों में भरुकच्छ और सुराष्ट्र ये दो नाम प्रसिद्ध हैं, शेष सभी अप्रसिद्ध हैं। विन्ध्यपृष्ठवर्ति देशों में किष्किन्ध, नैषध और नेपाल के नाम भी असंगत से प्रतीत होते हैं और इनके अतिरिक्त अधिकांश नाम अप्रसिद्ध ही हैं।
अागे ५६वें सर्ग में भगवान् नेमिनाथ के विहार-वर्णन में तीर्थङ्कर . के अतिशयों का वर्णन करते हुए लिखा है कि जहां तीर्थङ्कर विचरते हैं
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