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निबन्ध-निचय
अनजान पढ़ने वाले मनुष्य को ऊपर के श्लोक से पाण्डवों के ज्येष्ठादि क्रम में यह भ्रान्ति हुए विना नहीं रहेगी कि पांच पाण्डवों में युधिष्ठिर, अर्जुन, महाबली भीम, नकुल और सहदेव ये क्रमशः ज्येष्ठ कनिष्ठ थे । इस भ्रान्ति को ध्यान में लेकर यदि नीचे लिखे अनुसार श्लोक बनाकर पांच पाण्डवों का निरूपण करते तो कैसा स्वाभाविक होता ?
३०० :
"युधिष्ठिरो भीमसेनोऽर्जुनश्चापि यथाक्रमम् ।
नकुलः सहदेवश्च पञ्च ते पाण्डुनन्दनाः ।। "
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(३) लेखक ऐतिहासिक, भौगोलिक सीमाओं के अनुभवो नहीं : : : तीसरे सर्ग के ५ श्लोकों में कवि ने पंचशैलपुर और पंचशैलों का वर्णन किया है । वे कहते हैं - 'पंचशैलपुर श्रीमुनिसुव्रत जिन के जन्म से पवित्र बना हुआ है, जो शत्रु की सेना के लिये, पांच पर्वतों से परिवृत होने से दुर्गम है | पांच शैलों में 'पूर्व की तरफ ऋषिगिरि'' है जो चतुरस्र और जल - निर्झरों से युक्त है । यह पर्वत दिग्गज की तरह पूर्व दिशा को सुशोभित करता है । "वैभार पर्वत जो त्रिकोणाकार " है, दक्षिण दिशा को प्राश्रित हुआ है । इसी प्रकार "विपुल पर्वत भी त्रिकोणाकार " है और नैर्ऋत कोण के मध्य में रहा हुआ है । प्रत्यंचा चढ़ाए हुए धनुष की तरह "बलाहक" नामक चतुर्थ पर्वत उत्तर, वायव्य, पश्चिम इन तीन दिशाओं में व्याप्त है और पांचवां " पाण्डुक" पर्वत ईशान कोण में स्थित है ।
"
कवि ने जिसको पंचशैलपुर कहा है वह अर्वाचीन राजगृह नहीं । क्योंकि राजगृह नगर का निवेश राजा बिम्बिसार के पिता प्रसेनजित के समय में हुआ है, जब कि मुनि सुव्रत तीर्थङ्कर का जन्म राजगृह के निर्माण के पूर्व ही हो चुका था । उस समय पांच पर्वतों के बिचला नगर राजगृह अथवा पंचशैलपुर नहीं कहलाता था, किन्तु वह " गिरिव्रज" के नाम से प्रसिद्ध था । कवि का पंच पर्वत-स्थिति-विषयक वर्णन भी ठीक प्रतीत नहीं होता ।
भगवान् महावीर जब कभी राजगृह की तरफ जाते, तब उसके ईशान दिश। विभाग में अवस्थित " गुणशिलक" चैत्य में ठहरते थे । महावीर के
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