________________
हरिवंश पुराण और इसके कर्ता प्राचार्य जिनसेन
(१) कथावस्तु का आधार :::
प्रस्तुत पुराण के सम्पादक पण्डित श्री पन्नालालजी जैन साहित्याचार्य का अभिप्राय है कि "हरिवंश-पुराण" का कथावस्तु जिनसेन को अपने गुरु "कोतिषेणसूरि" से प्राप्त हुआ होगा, परन्तु यह अभिप्राय यथार्थ नहीं है। सामान्य रूप से "हरिवंश-पुराण' का विषय “महापुराण और त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्रों" के अन्तर्गत "नेमिनाथ चरित्र" और "कृष्ण वासुदेव" आदि के चरित्रों के प्रसंगों पर तो आता ही है परन्तु जिनसेन ने "हरिवंश" की उत्पत्ति के प्रारम्भ से ही “वसुदेवहिण्डी' के नाम से श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रसिद्ध "वसुदेव-चरित" के आधार से ही सब प्रसंगों को लिखा है। "वसुदेव-हिण्डी के प्रथम काण्ड" से तो अनेक वृत्तान्त लिये ही हैं, परन्तु "मध्यम काण्ड" के आधार से भी अनेक प्रकार के तपों का निरूपण किया है जो अधिकांश श्वेताम्बरमान्य आगमों में भी प्रतिपादित हैं।
पुराणकार ने पुराण के प्रथम सर्ग में निम्नोद्धृत श्लोकों में पुराण का विषय निरूपण करने की प्रतिज्ञा की है
"लोकसंस्थानमत्रादौ, राजवंशोद्भवस्ततः । हरिवंशावतारोऽतो, वसुदेवविचेष्टितम् ॥७१।। चरितं नेमिनाथस्य, द्वारवत्या निवेशनम् । युद्धवर्णन-निर्वाणे, पुराणेऽष्टौ शुभा इमे ॥७२॥"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org