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________________ : ३८ : भद्र बाहु-संहिता भद्रबाहुसंहिता का प्रथम भाग पढ़ने से ज्ञात हुआ कि यह ग्रन्थ बहुत ही अर्वाचीन है। मुनि जिनविजयजी इसे बारहवीं तेरहवीं शताब्दी का होने का अनुमान करते हैं, परन्तु यह ग्रन्थ पन्द्रहवीं शताब्दी के पूर्व का नहीं हो सकता। इसकी भाषा बिल्कुल सरल और हल्की कोटि की संस्कृत है। रचना में अनेक प्रकार की विषय सम्बन्धी तथा छन्दो-विषयक अशुद्धियां बताती हैं कि इसको बनाने वाला मध्यम दर्जे का भी विद्वान नहीं था। “सोरठ' जैसे शब्दप्रयोगों से भी इसका लेखक पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शती का ज्ञात होता है। इसके सम्पादक श्री नेमिचन्द्रजी इसे अष्टमी शताब्दी की कृति अनुमान करते हैं, परन्तु यह अनुमान केवल निराधार ही है। पण्डित जुगलकिशोरजी मुखतार ने इसे सत्रहवीं शती के एक भट्टारकजी के समय की कृति बतलाया है, जो हमारी सम्मति में ठीक मालूम होता है। जम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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