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: ३७ : प्रमेयकमलमार्तण्ड
कर्ता : प्रभाचन्द्र
इस ग्रन्थ में कुल छः परिच्छेद हैं-१. प्रमाणपरिच्छेद, २. प्रत्यक्षप्रमाणपरिच्छेद, ३. परोक्षप्रमाणपरिच्छेद, ४. प्रमाण-विषय-फल निरूपण परिच्छेद, ५. प्रमाणाभास परिच्छेद, ६, नय-नयाभासाधिकार परिच्छेद । लेखक की शैली प्रौढ़ है। खण्डनात्मक पद्धति से भिन्न-भिन्न विषयों का निरूपण कर लगभग बारह हजार श्लोक प्रमाणात्मक यह ग्रन्थ निर्मित किया है।
यद्यपि ग्रन्थ में ऐतिहासिक सूचनों का संग्रह विशेष नहीं है, फिर भी कुछ उल्लेखनीय बातें अवश्य हैं, जो नीचे सूचित की जाती हैं
" प्रमेयकमलमार्तण्ड' माणिक्यनन्दी के परीक्षामुख सूत्रों पर विस्तृत भाष्यात्मक टीका है। माणिक्यनन्दी का सत्ता-समय सम्पादक वंशीधरजी शास्त्री ने विक्रम संवत् ५६६ होना बताया है, जो दन्तकथा से बढ़कर नहीं। हमारी राय में माणिक्यनन्दी विक्रम की दशवीं तथा ग्यारहवीं शती के मध्यभाग के व्यक्ति हैं। ग्रन्थकार प्रभाचन्द्र धाराधीश भोजराजा के शासनकाल में विद्यमान थे। इससे निश्चित होता है कि इनका सत्ता-समय ग्यारहवीं शताब्दी का मध्यभाग अथवा उत्तरार्ध होना चाहिए।
चामुण्डराय के गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के त्रिलोकसार ग्रन्थ की कतिपय गाथाएँ प्रभाचन्द्र ने अपने इस ग्रन्थ में उद्धृत की हैं । त्रिलोकसार का रचनासमय विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। इससे सुतरां सिद्ध है कि प्रमेय-कमल-मार्तण्ड की रचना विक्रमीय
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