________________
हर्ता : समन्तभद्र
प्राप्त-मीमांसा
वृत्ति-वसुनन्दि, अष्टशती-अकलंक आप्तमीमांसा की मूल कारिकायें ११५ हैं, जो "देवागम नभोयानचामरादिविभूतयः” इस पद्य से शुरु होती हैं। मीमांसा में प्राचार्य ने प्राप्त-पुरुष की विस्तृत विचारणा की है और उनके सिद्धान्त प्रमाण नय अादि का समर्थन किया है। साथ-साथ अन्यान्य दार्शनिक मन्तव्यों का निरसन भी किया है।
मूल कृति में कर्ता ने अपना नाम सूचन नहीं किया है, फिर भी टीकाकारों ने इसका कर्ता समन्तभद्र माना है और उन्हें सबहमान वन्दन किया है।
टीकाकार वसुनन्दी ने प्राचार्य कुलभूषण को नमस्कार कर टीका का प्रारम्भ किया है और अकलंक ने समन्तभद्र को ही नमस्कार कर मीमांसा को शुरु किया है।
"अज्ञानाच्चेद् ध्रुवो०" इस कारिका के विवरण में अकलंक ने ब्रह्मप्राप्ति के सम्बन्ध में उल्लेख किया है।
श्री वसुनन्दि ने अपनी टीका में धर्म-कीति, मस्करि पूरण का भी उल्लेख किया है।
श्री समन्तभद्र का समय इतिहासवेत्ताओं की दृष्टि में ईसा की छठी शताब्दी तथा पट्टावली के अनुसार दूसरी शताब्दी का प्रारम्भिक काल है, ऐसा सम्पादक ने प्रस्तावना में उल्लेख किया है।
हमारी राय में प्राचार्य समन्तभद्र विक्रमीय पंचम शताब्दी के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org