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________________ : ३० : पंच - संग्रह ग्रन्थ १. आवश्यक सूचन : प्रथम पंच-संग्रह जो भाषान्तर के साथ मुद्रित है, करीब २५०० श्लोक परिमाण है । इसके पाँचों प्रकरणों के नाम क्रमशः नीचे लिखे अनुसार हैं १. जीव- समास - गाथा २०६ C २. प्रकृति - समुत्कीर्तन -- गाथा १२ शेष गद्यभाग ३. कर्म-स्तव - -गा० ७७ ४. शतक - गा० कुल ५२२, मूल गाथा १०५ ५. सप्ततिका - गाथा कुल ५०७, मूल गाथा ७२ यह ग्रन्थ भाषान्तर के साथ ५३६ पेजों में पूरा हुआ है । २. प्राकृत वृत्ति सहित पंच-संग्रह : श्रुतवृक्ष का निरूपण उपोद्घात में, गाथा ४३ जिसमें अंग उपांग पूर्वश्रुत के विवरण के साथ सब की पदसंख्या दी है । १. प्रकृतिसमुत्कीर्तन - गाथा १६ २. कर्म - स्तव -- गाथा ८८ गाथाएँ इसी विषय की अलग अंक वाली हैं । ३. जीवसमास - गा० १७६, यह ग्रन्थ ५४० से ६६२ तक के १२२ पृष्ठों में पूरा हुआ है । ४. शतक. - गा० १३६, अन्त में मङ्गलाचरण की दी गाथाएँ | ५. सन्चूलिका सप्तति - गाथा ६६, इस प्राकृत टीका वाले पंच-संग्रह के कर्त्ता पद्मनन्दी नामक प्राचार्य हैं और टीका भी इनकी स्वोपज्ञ प्रतीत होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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