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पंच - संग्रह ग्रन्थ
१. आवश्यक सूचन :
प्रथम पंच-संग्रह जो भाषान्तर के साथ मुद्रित है, करीब २५०० श्लोक परिमाण है । इसके पाँचों प्रकरणों के नाम क्रमशः नीचे लिखे अनुसार हैं
१. जीव- समास - गाथा २०६
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२. प्रकृति - समुत्कीर्तन -- गाथा १२ शेष गद्यभाग ३. कर्म-स्तव -
-गा० ७७
४. शतक - गा० कुल ५२२, मूल गाथा १०५
५. सप्ततिका - गाथा कुल ५०७, मूल गाथा ७२
यह ग्रन्थ भाषान्तर के साथ ५३६ पेजों में पूरा हुआ है ।
२. प्राकृत वृत्ति सहित पंच-संग्रह :
श्रुतवृक्ष का निरूपण उपोद्घात में, गाथा ४३ जिसमें अंग उपांग पूर्वश्रुत के विवरण के साथ सब की पदसंख्या दी है ।
१. प्रकृतिसमुत्कीर्तन - गाथा १६
२. कर्म - स्तव -- गाथा ८८
गाथाएँ इसी विषय की अलग अंक वाली हैं । ३. जीवसमास - गा० १७६, यह ग्रन्थ ५४० से ६६२ तक के १२२ पृष्ठों
में पूरा हुआ है ।
४. शतक. - गा० १३६, अन्त में मङ्गलाचरण की दी गाथाएँ |
५. सन्चूलिका सप्तति - गाथा ६६,
इस प्राकृत टीका वाले पंच-संग्रह के कर्त्ता पद्मनन्दी नामक प्राचार्य हैं और टीका भी इनकी स्वोपज्ञ प्रतीत होती है ।
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