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मूला० शीलगुणाधिकार पर्याप्तत्यधिकार
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निबन्ध-निचय
गाथा १६
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छेद सूत्र
आ० सू० ४६ पृ० ३६
उपर्युक्त गाथाओं में वर्णभेद तो सर्वत्र किया ही है, परन्तु कहीं कहीं दिगम्बर परम्परा को मान्यता के अनुकूल बनाने के लिए शाब्दिक परिवर्तन भी किया है । इनके अतिरिक्त अनेक गाथाओं के चरण तथा गाथार्ध तो सैकड़ों की संख्या में दृष्टिगोचर होते हैं । पंचाचाराधिकारादि में भगवती आराधना की कतिपय गाथाएँ भी ज्यों की त्यों उपलब्ध होती हैं । भगवती आराधना यापनीय संघ के विद्वान् मुनि शिवार्य की कृति है, इसी तरह दिगम्बर ग्रन्थों की गाथाओं का भी अनुसरण किया गया है । इन सब बातों का विचार कर हमने यह मत स्थिर किया है कि मूलाचार न कुन्दकुन्दाचार्य की कृति है, न वट्टकेर, वट्टे रक अथवा वट्टकेरल नामक कोई ऐतिहासिक व्यक्ति हुए हैं। मूलाचार यह संग्रह ग्रन्थ है । इसके संग्राहक यापनीय अथवा प्रज्ञातनामा कोई दिगम्बर विद्वान् होने चाहिए ।
भगवती आराधना :
भगवती आराधना का सविस्तार अवलोकन “श्रमरण भगवान् महावीर" पुस्तक के " स्थविरकल्प और जिनकल्प" नामक परिशिष्ट में दिया गया है, जिज्ञासु पाठक वहीं से जान लें ।
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