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________________ निबन्ध-निचय : २८७ ३. संस्कृत पद्यबद्ध पंच-संग्रह : प्राग्वाट वणिक् जाति के विद्वान् श्रीपालसुत डड्ड की कृति है। इसके पांच प्रकरणों के नाम इस प्रकार हैं१. जीव-समास-श्लोक २५७ २. प्रकृति-समुकीर्तन-श्लो० ४४ ३. कर्म-स्तव-श्लो० ६० ४. शतक-श्लो० ३३६ ५. सत्तरि-श्लो० ४२८ ६. सप्ततिका चूलिका ८५ ४ पंच-संग्रह संस्कृत आचार्य अमितगति कृत : १. बंधक-श्लोक ३५३ २. बध्यमान-श्लोक प्रकृति-स्तव में ४८ ३. बंध-स्वामित्व-श्लोक कर्म-बन्ध-स्तव १०६ ४. बंधकारण-३७५ श्लोकों के बाद शतक समाप्त ऐसा उल्लेख किया है, ५. बंध भेद- परन्तु अगले प्रकरण का गाथांक भिन्न नहीं दिया है किन्तु ७७९ श्लोकों के बाद " इति मोहपाकस्थानप्ररूपणा समाप्ता" यह लिखकर आगे गुणेषु मोहसत्त्वस्थानानि पाह-यह लिखकर नये अङ्क के साथ प्रकरण शुरु किया है और बीच में भिन्न-भिन्न शीर्षक देकर कुल ७६ श्लोक पूरे करके “सप्ततिकाप्रकरणं समाप्तम्" लिखा है। शतक, सप्ततिका इन दोनों प्रकरणों की समाप्ति के उल्लेखों में इनके नाम आये हैं, मूल श्लोकों में नहीं। परन्तु इन दो प्रकरणों में दृष्टिवाद का नामनिर्देश श्लोकों में हुआ है। इसके बाद सामान्य विशेष रूप से बन्ध-स्वामित्व का निरूपण है, जो भिन्न-भिन्न शीर्षकों के नीचे ६० श्लोकों में पूरा किया है। बीच में गद्म भाग में भी विवरण किया है। ग्रन्थकार की प्रशस्ति से जाना जाता है कि १०७३ विक्रम में यह ग्रन्थ पूरा किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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