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१२ :
निबन्ध-निचय
अवचूरिकार ने अपनी कृति का निर्माणसमय सूचित नहीं किया, फिर भी वे विक्रम की पन्द्रहवीं शती के व्यक्ति हो सकते हैं, क्योंकि इनके गुरु श्रीजयकीर्ति सूरि का भी यही समय है ।
यह अवचूरि नियुक्ति की बृहद् वृत्ति को देख कर उसे गम्भीरार्थ जानकर इन्होंने नियुक्ति पर प्रस्तुत प्रकटार्था अवचूरि लिखी है, और इसमें कोई असंगत बात लिखी गई हो तो उसका संशोधन करने की प्रार्थना की है।
अवचूरि का श्लोकपरिमाण लगभग तीन हजार होने का अन्त में सूचन किया है।
(२) पिण्डनियुक्ति टीकाकार सरवालगच्छीय श्री वीरगरणी :
___ आचार्य वीरगणि ने पंचपरमेष्ठी की स्तुति करने के उपरान्त पिण्डनियुक्ति की शिष्यहिता वृत्ति बनाने की प्रतिज्ञा करते हुए लिखा है, 'पंचाशक आदि शास्त्रसमूह के बनाने वाले प्राचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने इस नियुक्ति पर विवरण बनाना प्रारम्भ किया था, परन्तु “स्थापना-दोष" पर्यन्त इसका विवरण बनाने के बाद वे स्वर्गवासी हो गए थे, इसलिये उसके आगे की विवृत्ति वीराचार्य नामक किन्हीं प्राचार्य ने समाप्त की है, परन्तु उसमें अनेक गाथाएं “सुगमा" कह कर छोड़ दी हैं और जिन पर विवरण किया है, उन्हें भी वर्तमानकालीन मन्दमति पाठकों के लिए समझना कठिन है। अतः सारी पिण्डनियुक्ति की स्पष्ट व्याख्या करने के लिए मेरा यह प्रयास है।
उपर्युक्त आशय वाले लेख में आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी के नियुक्ति पर की विवृति समाप्त करने के पूर्व ही स्वर्गवासी होने की जो बात लिखी है वह ठीक नहीं जान पड़ती, पिण्डनियुक्ति की विवृति ही नहीं तत्त्वार्थवृत्ति आदि अन्य भी हरिभद्रसूरि कृत ग्रन्थ आज अपूर्ण अवस्था में मिलते हैं, इसका कारण यह नहीं कि वे समाप्त हुए ही नहीं थे, किन्तु इस अपूर्णता का खरा कारण तो ग्रन्यभण्डार सम्हालने वाले गृहस्थों की बेदरकारी है,
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