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श्री पिण्डनियुक्ति और ___ पिण्डविशुद्धि
(१) अवचूरि-क्षमारत्न कृता (२) टीका-वीरगरिग कृता (त्रुटिता) (३) दीपिका-माणिक्यशेखर कृता (त्रुटिता)
पिण्डनियुक्ति जैन श्रमण श्रमणियों के ग्राह्य भोग्य पेय आहार पानी का निरूपण करने वाला एक प्राचीन निबन्ध है, इस पर अनेक पूर्वाचायों ने टीकाएँ लिखी थीं, परन्तु अब वे सब पूर्ण रूप से नहीं मिलती, प्राचार्य श्री मलयगिरिजी ने पिण्डनियुक्ति पर टीका लिखी है और वह छप भी गई है, परन्तु इस टीका का अवलोकन पृथक् लिखा गया है, इसलिए यहाँ इसकी चर्चा नहीं करेंगे, यहाँ पर अंचल-गच्छीय विद्वान् क्षमारत्न की अवचूरि, सरवाल-गच्छीय वीरगरिण की शिष्यहिता नामक टीका ओर अंचल-गच्छीय मेरुतुंगाचार्य के शिष्य माणिक्यशेखर की दीपिका; इन तीन टीकात्रों के सम्बन्ध में कुछ लिखेंगे ।
सामान्य रूप से टीकाकार पिण्डनियुक्ति को श्रुतधर श्री भद्रबाहुस्वामी की कृति मानते हैं, परन्तु यह मान्यता यथार्थ नहीं है, क्योंकि इसमें भद्रबाहु के परवर्ती आचार्य आर्यसमित, तथा नागहस्ती के शिष्य प्राचार्य श्री पादलिप्त सूरि के वृत्तान्त पाते हैं, इससे हमारी मान्यता के अनुसार यह नियुक्ति विक्रमीय द्वितीय शताब्दी के बाद की हो सकती है।
(१) पिष्डनियुक्ति की अवचूरि के कर्ता श्री क्षमारत्नजी श्री विधपिक्ष गच्छ (अंचलगच्छ) के प्राचार्य श्री जयकीति सूरिजी के शिष्य थे,
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